Book Title: Subodh Samachari
Author(s): Macchindracharya
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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रिएण समं वंदणं दाउं इयरेऽवि सज्झायं पवेइंति, सुद्धे सज्झाए जोगवाहिणो जोग्गुक्खेवावाणयं काउस्सग्गं सत्तावीसुरसासं करेंति, पाभाइयपडिकमाणंतरं वा पारिता चउबीसत्थयं भणंति, तओ सावयकयपूयापुव्वं चेइहरे वसही वा सुयखंधाईणं उद्देसाइनिमित्तं नंदिकडावणियं वासे सिरसि खिबेइ, वामपासे तं काउं वर्धृतियाहिं थुईहिं चेइए वंदइ, उस्सग्ग ४, तओ पोत्तिं पडिलेहिय बारसावत्तं वंदणं दाऊण उद्देसाइनिमित्तं नंदिकड्डावणियं पूर्ववत् काउसग्गं करेंति, पारित्ता चउवीसत्थयं मुहेण भणंति, नमोकारतिगपुव्वं वाणायरिओ उद्देतत्थं अणुन्नत्थं वा नंदि कट्टइ-नाणं पंचविहं पन्नत्तं इच्चाई जाव इमं पट्टवणं पडुच्च सुयखंधं अंगंवा उद्देसामित्ति, गंधाभिमंतणं तित्थयरपाएसु गंधक्खेवो अहासन्निहियाणं साहुमाईणं वासदाणं तओ खमासमणं दाउं भणंति-तुब्भे अम्हं आवस्सयाइसुयखधं आयाराइअंगं वा उदिसह इत्यादि प्राग्वत, तइए तुब्भेहिं अम्हं सुयखंधाइ उद्दिष्टुं इच्छामि अणुसटुिंति भणिर गुरू भणइ-खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं उद्दिटुंति जोगं करेजासित्ति, शेषं । प्राग्वत् जाव काउस्सग्गो, उद्देसे जोग्गं करेज्जाहि समुद्देसे थिरपरिचियं करेज्जाहि अणन्नाए सम्मं अवधारिज्जह अन्नेसिपि पवेज्जहत्ति सव्वत्थ वत्तव्यं, सयखंधस्स अंगस्स य उद्देसे अणुन्नाए य नंदी भवइ, एवं उदेसाइ काऊणं
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