Book Title: Subodh Samachari
Author(s): Macchindracharya
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 51
________________ | आसाढ पुन्निमाए कत्तियपुन्निमाए पक्खियंतेसु असज्झाइयंतिकाउं कालग्गहणाइ न कीरइ, विवाहपन्नाचे आगाढ जोगवज्जं अणोज्जायारंभदिणाउ आरओ चेव अणागाढजोगा आगाढजोगा य निक्खिप्पंति, सइ यऽसज्झाइए सज्झायकाल नंड - | लाइयं न कप्पइ, वरिसाकालसमए अदागनक्खत्तपारंभाओ साइयंत नक्खत्तदसग जाव विज्जुगज्जिएस असज्झाओ। न कीरइ उक्कावज्जं, नवरं उउबडे काले विज्जू उक्का य एक्कयोरिसिं हण३, गज्जियं दो पहरे, रविचंदाणं गहणे 'आइन्नं दिणमुक्के सोच्चिय दिवसो य राई य' त्ति वयणाओ तदहोरत्तमसज्झाओ, पंचिंदियतेरिच्छासज्झाइयं पहुच खेत्तओ सहित्थाओ परओ न होइ, अंडगाइए पडिए पोरिसितिगं जाव नो चरिमो माणुसासज्झाइए मच्छियपयमेतेऽवि भूमिपडिए अहोरत्तमसज्झाओ, नवरं रात्तमि पभायसमएव असझाइए पडिए उग्गए अभिनवे सुरिए पुत्रा | |होरत्तस्स पुण्णत्ताओ' सूराई जेण हुंतिऽहोरत्त ' त्ति वचनात् अन्याहोरात्रप्रारम्भेऽज्झाओ नेत्र भवइ, पसूयपुत्तइअस्थियाए पुत्त जम्मादिणाओ सत्त दिणा असज्झाओ अट्ठ कप्पट्टियाए त्ति, रतुकडा उ इत्थी अट्ठ दिणा तेण सत्त सुक्कहिएत्ति वयणाउ, एवं च असज्झाइयपरिहारेण कालग्गहणा इयं सव्त्रं कीरइ, तहा ' अंगसुत्रकखंधाणं उद्देमो सुक्क पक्खमि 'ति पञ्चकल्पवचः तइया पंचमिदसमी एक्कारसितेरसीतिहीसु इति तिथयः सुत्रोक्ता इति, आयरणाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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