Book Title: Subodh Samachari
Author(s): Macchindracharya
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 46
________________ श्रीचन्द्रीया सामाचारी ॥२१॥ पसत्थे दिणे पसत्थमिगसिराइ दससु नाणनक्खत्तेसु अन्नयरनक्खत्ते सुभेसु सुमिणसउणमंगलेसु दिवसपढमपउण योगोवा परिसिमझे अंगसुयखंधाणं उद्देसाइ करेज्जा, नो पच्छिमपोरिसि राइए वा, अज्झयणुदेसाइयं राईएवि करिइ, तहा बाहिरजोगा आगाढाऽणागाढा वा, उत्तरज्झयणपण्हावागरणाई आगाढा, सवसमत्तीए उत्तारज्जइत्तिकाउं, अन्नेऽ. |णागाढा, आवरसयाई, भगवई महानिसीहं चागाढा, तहा कालियउक्कालिएसु जे उक्कालिया तेसु संघट्टयं न भवति, कालिएसु तं भवति, केसुवि संघट्टाउत्तवाणयदुगंपि होइ, एयविही उवरि भण्णिही, तहा कालिएसु कालग्गहणं । सज्झायपठुवर्ण च होइ । तत्थ कालग्गहणविही भन्नइ-पच्छिमदिसि ठवणायरियं ठवित्तु कालग्गाही दंडधरसमेओ खमासमणं दाउं भणइ-इच्छाकारेण पाभाइयं कालं पडियरेमो, इच्छं मत्थेण वंदत्ति आवसी आसज्ज ३त्ति भणंता कालमंडलं जावागच्छंति, दिसालोयं करिय दंडधरो ठवणायरियसमीवं पुणोवि आगच्छंतो मग्गे आसज्ज ३ निसिही वार ३ भणंतो नमो खमासमणाणंति भणिय बंदिय भणइ-इच्छाकारेण संदिसह पाभाइयकाल वार बट्टे ( वाटइताड.) इच्छं मत्थेण वंदे आवसीति काउं आसज्जयत्ति भणंतो कालग्गाहिसमी गंतूण भणइ-साहवो ! उवउत्ता १ असमत्तीएवि दिणचउक्काणंतरमुत्तरिजइत्ति काउं ( ताड. टीप.) Jain Education Inter For Private & Personal use only Aliw.jainelibrary.org

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