Book Title: Subodh Samachari
Author(s): Macchindracharya
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 41
________________ उपाध्यायस्थापनाऽप्येवमेव, नवरं अक्खमुट्ठीओ गुरू वंदणं च न देइ, कालग्गहणसत्तस्सइयनंदिकट्टणं च न करेइत्ति, दाहिणकन्ने पत्ताए लग्गवेलाए इमा विजा वार ३ कहेइ-ॐनमो अरिहंताणं ॐनमो सिद्धाणं ॐनमो आयरियाणं ॐनमो उवज्झायाणं ॐनमो सवसाहूणं ॐनमो ओहिजिणाणं ॐनमो परमोहिजिणाणं ॐनमो सम्बोसहिजिणाणं ॐनमो अणंतोहिजिणाणं ॐनमो भगवओ अरिहओ महावीरस्स सिज्झउ मे भगवई महई महाविज्जा वीरे २ महावीरे जयवीरे सेणवीरे वडमाणवीरे जयंते अपराजिए अणिहए स्वाहा । उवयारो चउत्थेण साहिज्जइ, पव्वज्जोवट्ठावणागणिजोगपइटाउत्तमट्ठपडिवत्तिमाइएसु कजेसु सत्तवाराजवियाए गंधक्खेवो नित्थारगपारगो होइ पूयासक्कारारिहो य १३ ॥ | सम्प्रति महत्तरापदस्थापनाविधिरुच्यते, तत्र जहसत्तीए संघपूयापुरस्सरं पसत्थे तिहिकरणमुहुत्तनक्खत्त जोगलग्गजुत्ते दिवसे महत्तराजोग्गा निसेज्जा करिइ, तओ सिरिसणीए सरीरपक्खालणं काउं कयलोयाए जिणा|ययणे निवेसिय समोसरणसमीये गुरू अहीयसुर्य सिस्सिणिं वामपासे ठवित्ता तुम्हे अम्हं पुवअज्जाचंदणज्जाइनिdसेवियमयहरपवत्तिणीपयस्स अणुजाणावणियं नन्दिकडावणियं वासनिक्खेवं करेहत्ति भणाविन्तो सिरिसणीए सिसि Jain Education Inter For Private & Personal use only "www.jainelibrary.org

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