Book Title: Subodh Samachari
Author(s): Macchindracharya
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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तदुत्तरं चंदणचच्चियदाहिणकन्नाए गुरू परंपरागयं वद्धमाणविज्जं कन्ने कहेइ वार ३, तदुत्तरं नामकरणं, अज्जचंद | णामिगावईण परमगुणे साहित्ता महत्तराए अणुसट्ठि देइ, जहा - उत्तममियं पयं जिणवरेहिं लोगुत्तमेहिं पन्नत्तं । उत्त| मफलसंजणयं उत्तमजणसेवियं लोए ॥ १ ॥ धन्नाण निवेसिज्जइ धन्ना गच्छंति पारमेयस्स । गंतुं इमरस पारं पारं वच्चंति दुक्खाणं ॥ २ ॥ तहा वइणीणं च अणुसट्ठि देइ-ता कुलबहुनाएणं कज्जे निब्भत्थिएहिवि कर्हिचि । एईए पायमूलं आमरणंतं न मोक्तव्वं ॥ १ ॥ नाणस्स होइ भागी थिरयरओ दंसणे चरिते य । धन्ना आवकहाए | गुरुकुलवासं न मुंचति ॥ २ ॥ अणुनायमहत्तरपया समुदाएणं वंदणं दाउं पच्चक्खाणं निरुद्धाइ करेइ, सव्वलोगो वंदइ, थीजणो वंदणयं च तीए देइ, जिणहरे गुरूण समोसरणे य पूया कायव्वा, पवित्तिणीपए अणुन्नाए वत्थपत्ताइगहणं सयंपि तीए काउं कप्पइ १४ ।
गणानुज्ञाविधिस्त्वयम् - गुरुर्वासादिकं शिष्यशिरास प्रक्षिप्य इच्छाकारण तुम्हे अम्हं दिगाइअणुजाणावणियं
१ एवं मौलगुरुः कदाचिद् आयुःपरिसमाप्तिसमयमवधार्य कृतानुयोगानुज्ञस्य अन्यस्य वाऽधिकगुणस्य गणानुज्ञां करोति, स च सुपात्रे कार्यः, | गणहरसदो गोयममाईहिं धीरपुरिसेहिं । जो तं ठवइ अपत्ते जाणतो सो महापावो ॥ १ ॥ तत्र (टीप्पितमिदं त्रयोदशशताब्दीयताडपत्र पुस्तके)
यतः
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