Book Title: Subodh Samachari
Author(s): Macchindracharya
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 36
________________ श्रीचन्द्रीया सामाचारी राज्यादिपति.११ ॥१६॥ स्यविधिः१. गुज्जोयमाणमिणं ॥ ५॥ पन्नास सयं तिसया पणसय अठ्ठत्तरो तहा सहसो । एयं पयप्पमाणं उज्जायासुं अहकमेणं ॥ ६ ॥ संजम बंभे कप्पे नाणे किरियाएँ तह य मिच्छत्ते । बोही मग्गे य तहा अट्ट पया हुँति नायव्वा ॥७॥ बंदण नाणं चउवीस दंसणं पडि समा य चारित्तं । पञ्चश्वसग्ग तवो सव्वत्थाभंतरंविरियं॥८॥पण संलेहण पन्नरस कम्म नाणाइ अट्ट पत्तेयं । बारस तव विरियतियं पण संम वयाई पत्तेयं ॥ ९ ॥११॥ १२ इदानीमाचार्यपदस्थापनाविधिरच्यते-पसत्थे तिहिकरणमुहुत्ते नक्खत्तजोगलग्गजुत्ते दिवसे अक्खगुः रुजोग्गाउ दोन्नि निसेज्जाउ पडिलेहित्तु भूमि तव्वेलं कोरंति, संघट्टियाउ धरिजंति, तओ नियनिसेज्जाए निसन्नस्स गुरुस्स गहिए काले पवेइए सूरिपयजोग्गो सीसो कयलोओ चोलपट्टरओहरणमुहपोत्तियामेत्तोवगरणो संतो वंदित्ता पोत्तिं पडिलेहेइ गुरू य, तओ गुरुणा सह बारसावत्तं वंदणं दाउं भणइ सीसो-सज्झायं पवेभि, तओ दुवेऽवि सज्झायं समगं पट्टविंति, उस्सग्गे पंचमंगलं चिंतित्ता उद्धीकयभुया चउवीसगदुमपुफियाइ संजमे सुट्टियप्पाणं गाहपज्जतं जाव चिंतंति, पारित्ता गुरू वंदणगपुव्वं सज्झायं पवेयइत्ता तइयवंदणं सीसेण सह दाउं सनिसेज्जाए उवविसइ, सीसो सज्झायं पवेयइ, एवं सज्झाए पट्टबिए जिणाययणे निवेसियसमोसरणसमीवे गुरुणा सूरिमंतेण श्रीखण्डादिच Jain Education Inter THAT For Private & Personal use only Mw.jainelibrary.org

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