Book Title: Subodh Samachari
Author(s): Macchindracharya
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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इय उस्सग्ग लग्ग अट्ठगहो । सामाइयतियकढण तिपयाहिण वास उस्सग्गो ॥ १ ॥ ॥ इति प्रव्रज्याविधिः ८ ॥
९ उत्थापनाविधिरयम् — पसत्थे तिहिकरणमुहुत्तनक्खत्ते पसत्थे खेत्ते जिणभवणाइयं गंतूण सूरी गन्धान- । भिमन्त्रय शिष्यं भाणयति इच्छाकारेण तुम्मे अम्ह महव्वयारोवणत्थं नंदिकड्डावणियं वासनिक्खेवं करेह, देवे वंदावेह, तओ सूरी सीसं वामपासे ठवित्ता व ंतियाहिं थुईहिं देवे बंद कायोत्सर्गः ४, तओ महञ्चयारोवणत्थं सीसेण | समं सूरी सत्तावीसुस्तासं काउस्सग्गं करित्ता पारिता चउवीसत्थयं भणित्ता सीसेण समं तिन्नेि वारे नमोक्कारं भगइ, तओ सूरी दंतिदंतोन्नएहिं पिट्टोवरिकुप्परट्ठिएहिं करेहिं स्यहरणं ठावित्तु वामकरानामिकायाए मुहपोत्तियं लंबंतिं धरेत्तु सम्मं उवओगपरो एक्केक्कवयं तिन्नि ३ बारे कटुइ जाव लग्गसमए इच्चेइयाइं पंच महव्त्रयाई राई भोयणवेरमणछट्टाई [[ गाहा ] तिन्नि वारे कढई, वासाद्यभिमन्त्रणं जिनपादगन्धपूजनं, साध्वादिभ्योऽक्षतदानं, तओ सीसो वंदित्ता भणइ| इच्छाकारेण महव्त्रयाइं आरोवेहात्ति इत्यादि प्राग्वत्, तईए वंदणए-तुम्भेहिं अम्हं महव्वयाई आरोवियाई इच्छामो अणुसट्ठिन्ति सीसेण भणिए गुरू भणइ - आरोवियाईं तुम्ह महव्ययाइं खमासमणाणं हत्थेणं गुरुगुणेहिं वड्ढाहि नित्थारगपारगो होहि, शेषं प्राग्वत् जाव पंचमहव्वयारोवणथिरीकरणत्थं सत्तावीसुस्सासो काउस्सग्गो करिइ पारिता
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