Book Title: Subodh Samachari
Author(s): Macchindracharya
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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रमेज्जा॥ ४८॥ नो ते जइ तेणं चिय भवेण निव्वाणमुत्तमं पत्ता । तोऽणुत्तरगेवेजाइएसु सुइरं अभिरमेउं ॥४९॥ उत्तमकुलंमि उक्किट्ठलट्ठसव्वंगसुंदरा पयडा । सन्वकलापत्तट्ठा जणमणआणंदणा होउं ॥ ५० ॥ देविंदोवमरिडी
दयावरा दाणविणयसंपन्ना । निम्विन्नकामभोगा धम्म सयलं अणुढेउं ॥५१॥ सुहझाणानलनिवडुघाइकम्भिधणाIN||महासत्ता । उप्पन्नविमलनाणा विहुयमला झत्ति सिझंति ॥ ५२ ॥ इय विमलफलं मुणिउं जिणस्स महमाणदेवसू-|||| रिस्स । वयणा उवहाणमिणं साहेह महानिसीहाओ ॥ ५३ ॥ उवहाणविही सम्मत्ता॥४॥
अधुना एतदुद्यमनरूपो मालारोपणविधिरुच्यते-तत्र प्राचीन एव नन्दिप्रक्रमः सर्वोऽपि, विशेषस्त्वयम्मालाग्राही जीवः मालादिनात्प्राग्दिने परमभक्त्या वस्त्राशनादिना प्रतिलंभितसाधुजनः विहितसाधर्मिकवस्त्रताम्बूलादिप्रवरवात्सल्यः प्राप्ते च प्रशस्ते तिथिकरणमुहर्तनक्षत्रयोगलग्नचन्द्रबलान्विते मालादिने निजविभवानुरूपं विहितजिनपूजनः कृतविशिष्टोचितशरीरनेपथ्यो मीलितनिःशेषमातापित्रादिनिजकबन्धुजनः विहितसाधुसाधर्मिकवन्दनः संनिहितीकृतप्रचुरगन्धश्रीखण्डाक्षतनालिकेर्याधुचितविध्यङ्गः अक्षतभूताश्नलिस्त्रिप्रदक्षिणीकृतसमवसरणः पंचमंगल महासुयखंधपडिकमणसुयकखंधचैत्यवन्दनसत्रअणजाणावणियं नंदिकडावणियं वासनिक्षेपं करेह देवे वंदावेहत्ति
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