Book Title: Subodh Samachari
Author(s): Macchindracharya
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 9
________________ नमोक्कार कर्डेतो पयक्खिणं देइ, लोगो वासे खिवइ ५, पुणोऽवि एवं दोन्नि वारे, तओ वंदित्ता भणइ-तुम्हाणं पवेइयं साहूणं । पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि. गुरू भणइ-करेह ६ । (पच्छा खमासमणं) एवं सत्त छोभवंदणगा सव्वत्थ भवति । तओ सम्मत्ताइ सामाइयतिगस्स स्थिरीकरणार्थ कायोत्सर्ग करोति गुरुवामपार्श्वस्थितः, सप्तविंशत्युच्छासमानः सर्वत्र कार्यः कायोत्सर्गः पारित्ता मुहेण चउवीसत्थयं भणइ, भूयः शक्रस्तवपाठः, गुरोस्त्रिप्रदक्षिणीकरणम्, अणंतकायपंचुंबरिराइभोयणाइविरइअभिग्गहं कारेयव्यो, एकाशनादि तदिने कार्यते, उपविश्य देशना कार्या सम्यक्त्वादिदुर्लभताविषया, जिणपूयाइअभिग्गहे देइ, पंचुंबरि चउविगई प्रभृति द्रव्य बावीस ज्ञाप्यः, तथा चोक्तम्-" पंचुंबरि ५ चउविगई ९ अनायफल १० कुसुम ११हिम १२ विस १३ करे १४ य। मट्टिअ१५ राईभोयण१६ घोलवडा१७ रिंगणा१८चेव ॥१॥पंपोट्ट१९ यसिंघाडग२० वाइंगण२१ काइवाणिय२२ तहेव । बावीसं दव्वाइं अभक्खणीआई सडाणं ॥२॥" | चैत्यवन्दनविधिरयम् १॥ यस्य तु देशविरतिसामायिकं द्वादशवताद्यात्मकमारोप्यते तस्य त्वधिका नन्दिः कार्या. देशविरतिसामायिका भिलापेन सर्व वाच्यम्, उक्तञ्च-''चीवंदणवंदणयं गिहिवय उस्सग्ग पइवउच्चरणं । जहसत्ति वयग्गहणं पयाहिणं देसणं चेव॥१॥" देशविरत्यारोपणविधिः नवरं हस्तन्यस्तपरिग्रहप्रमाणपत्रटकस्य व्रताभिलापो यथा Jain Education a l For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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