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विषय का महत्व एवं अध्ययन स्त्रोत
मथुरा नगरी जैन धर्म के साथ-साथ वैष्णव एवं बौद्ध धर्म की प्रमुख केन्द्र रही है। भारतवर्ष के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक गौरव की आधार शिलाएं इसकी सात महापुरियां हैं । मथुरा की गणना सप्त महापुरयों में की गई है । सप्त महापुरियों के नाम इस प्रकार हैंअयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवन्तिका और द्वारिका । * पद्मपुराण में मथुरा का महत्व सर्वोपरि मानते हुए कहा गया है कि यद्यपि काशी आदि सभी पुरियां मोक्षदायिनी हैं, तथापि मथुरापुरी धन्य है । यह पुरी देवताओं के लिए भी दुर्लभ है ।" इसी का समर्थन ‘गर्गसंहिता' में करते हुए बतलाया है कि पुरियों की रानी कृष्णपुरी मथुरा ब्रजेश्वरी, यज्ञ - तपोनिधियों की ईश्वरी है। यह मोक्षदायिनी धर्मपुरी मथुरा नमस्कार योग्य है।10
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शूरसेन प्रदेश की राजधानी मथुरा की भौगोलिक सीमा समय-समय पर परिवर्तित होती रही । 'वाराह पुराण' में मथुरामण्डल का विस्तार 20 योजन बताया गया है । 'वायु पुराण'"" में इसका विस्तार 40 योजन कहा गया है। एक योजन चार कोस अथवा सात मील का होता है, अतः ब्रजमण्डल का विस्तार चौरासी कोस का माना गया।
विद्वान कृष्णदत्त वाजपेयी ने लिखा है कि वर्तमान मथुरा तथा उसके आस-पास का प्रदेश जिसे ब्रज कहा जाता है, प्राचीन काल में 'शूरसेन' जनपद के नाम से प्रसिद्ध था । इसकी सीमाएं समय-समय पर बदलती रहीं। कालान्तर में मथुरा नाम से ही यह जनपद विख्यात हुआ ।
सातवीं शती में जब चीनी यात्री ह्वेनसांग मथुरा आया तो उसने लिखा कि मथुरा राज्य का विस्तार पांच हजार ली (लगभग आठ सौ तैंतीस मील) था । 14
इस वर्णन से यह ज्ञात होता है कि सातवीं शती में मथुरा के अन्तर्गत वर्तमान मथुरा - आगरा जिलों के अतिरिक्त आधुनिक भरतपुर तथा धौलपुर जिले और उपरले मध्यभारत का उत्तरी लगभग