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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
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होती है। जैन संस्कृति का स्वभाव भी ऐसा ही लचीला है । विदेशी आक्रान्ताओं ने भी उसे दबा तो लिया परन्तु निष्प्राण नहीं कर पाये आक्रमणकारियों ने मंदिरों और प्रतिमाओं का विनाश किया परन्तु जैन संस्कृति जन संस्कृति बनकर लोगों के हृदय में पल्लवित होती रही ।
शूरसेन जनपद में जैन संस्कृति ने समाज, धर्म, व्यापार, कला, आचरण, समृद्धि, साहित्य और लोक जीवन को अत्यधिक प्रभावित किया जैन संस्कृति का अनेकानेक सुख-समृद्धि के उदाहरण शूरसेन जनपद से प्राप्त पुरातात्विक एवं साहित्यिक साक्ष्यों में बहुलता से दृष्टिगोचर होता है
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संस्कृति एक प्रवाहमान सरिता के समान हैं। श्रमण संस्कृति शताब्दियों से अपनी एक विशिष्ट पहचान के साथ प्रवाहित हो रही है । यह निरन्तर गतिमान संस्कृति है । जैन संस्कृति शूरसेन जनपद में अपनी दीर्घ यात्रा में अनेक अन्य संस्कृतियों को प्रभावित किया एवं स्वयं भी प्रभावित हुई परन्तु सदैव गतिशील बनी रही।
जिस प्रकार इलाहाबाद विभिन्न नदियों का संगम स्थल है उसी प्रकार शूरसेन विभिन्न संस्कृतियों का मिलन स्थल है। यहाँ धर्मों एवं संस्कृतियों की एकता शताब्दियों पूर्व से चलती आ रही है ।
संदर्भ ग्रन्थ सूची
1. भानावत, नरेन्द्र; जैन धर्म का सांस्कृतिक मूल्याँकन, पृ. 155
2. जैन, प्रेम सुमन जैन धर्म की सांस्कृतिक विरासत, पृ. 3
3. त्रिपाठी, राममूर्ति जैन संस्कृति की विशेषताएँ, पृ. 144 कर्मयोगी श्री
केसरीमल जी सुराणा-अभिनन्दन ग्रन्थ।
4. जैन, हीरालाल, पू. नि., पृ. 144
5. त्रिपाठी, राममूर्ति पू. नि., पृ. 144
6. जैन, हीरालाल ; पू.नि., पृ. 376