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उपसंहार
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जैन धर्म का एक अन्य महत्वपूर्ण योगदान समाज में स्त्रियों की स्थिति को ऊँचा उठाना था। परवर्ती वैदिक काल में नारियों की स्थिति गिर गई थी। इस स्थिति को सुधारने का श्रेय तीर्थंकर महावीर को जाता है। जैन धर्म के सिद्धान्तों में स्त्री और पुरूष के बीच किसी प्रकार का अन्तर नहीं रखा गया है। विभिन्न कार्यों के सम्पादन में दोनों को समान अधिकार प्रदान किया गया है।
धार्मिक अनुष्ठानों के लिए प्रत्येक वर्ग की स्त्रियों को सर्वोच्च अधिकार प्रदान किया गया है। नारी को गौरवपूर्ण स्थान प्रदान करने के लिए जैन धर्म का विशेष अवदान है। ___ सत्य और अहिंसा जैन धर्म के आदर्श सिद्धान्त है। विश्व के प्रायः सभी धर्मों में हिंसा को हेय समझा गया, किन्तु उसे त्याज्य नहीं माना जाता है। अहिंसा को धर्म का प्रमुख आधार मानने का मूल श्रेय श्रमण-परम्परा को है। जैन धर्म में अहिंसा को दृढ़ता से अपनाया गया है। अहिंसा के अन्तर्गत भावना और विचार को लेकर भगवान महावीर ने आत्मशुद्धि का व्यावहारिक रूप प्रस्तुत किया। ____ भारतीय संस्कृति के संस्करण पक्ष को जैन धर्म में मान्य अहिंसा ने अविरल प्रभावित किया है। अहिंसा को धर्म का मूल आधार मानकर जैन धर्म ने मानवेतर प्राणियों के लिए भी जीने का अधिकार माना तथा इसे धार्मिक दायित्व के रूप में समाज का कर्तव्य निरूपित किया।
जैन धर्म में अहिंसा की व्याख्या व्यापक स्तर पर की गई। साधु तथा गृहस्थ के लिए अलग-अलग सीमाएँ निर्धारित की गई। गृहस्थों के लिए नियम अधिक कठिन नहीं है। जैन धर्म में अहिंसा को एक नैतिक गुण माना गया है। जब तक स्तर ऊँचा नहीं हो सकेगा। अहिंसा सर्वश्रेष्ठ नैतिक स्तर है, जिसके आधार पर मानव व्यवहार की समीक्षा की जा सकती है। इससे व्यक्ति के कार्य और नैतिकता की परीक्षा ली जा सकती है। उचित या अनुचित निर्णय व्यक्ति के स्तर पर निर्भर करता