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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
है। सामाजिक स्तरों पर एवं नैतिक निर्णयों में गिरावट आ जाने पर कोई भी समाज, संगठन या राष्ट्र गरिमा के साथ जीवित नहीं रह सकता। ___ समाज में कुछ ऐसे लोग अवश्य होने चाहिए जो दृढ़ता से नैतिकता का पालन करें। जैन साधु ऐसे ही व्यक्तित्व हैं जो अहिंसा तथा अपरिग्रह के सिद्धान्तों का दृढ़तापूर्वक आचरण करते हैं। जैन मुनियों ने समाज को कितना प्रभावित किया, यह समाज में प्रचलित शाकाहारी भोजन-प्रणाली का देखकर समझा जा सकता है तथा समाज जैन-मुनियों का सम्मान करता है और उनके समान जीवनचर्या अपनाने का प्रयत्न करता है। ___ साहित्य एवं दर्शन तथा ललितकला के क्षेत्र में भी जैनधर्म का उल्लेखनीय योगदान है। मथुरा में जैन आगमों का संकलन करने के लिए आचार्य स्कन्दिल की अध्यक्षता में चौथी शताब्दी ई. में एक समिति आहूत की गई।
दर्शन के क्षेत्र में अहिंसा, स्याद्वाद, अनेकान्तवाद, कर्मवाद का सिद्धान्त प्रमुख है। वास्तुकलाओं में भी जैन धर्म का महत्वपूर्ण योगदन
___ जैन धर्म ने आचार-विचार के क्षेत्रों में शील सदाचार तथा पवित्रता की भावनाओं का उन्नयन किया। समता, अहिंसा एवं मैत्री की भावना पर बल देकर भारतीय जीवन-दर्शन को नया सन्देश प्रदान किया। आर्थिक तथा सामाजिक व्यवस्था में समृद्धि, व्यवहार, शूचित तथा शान्ति की भावना का संवर्धन कर जैन धर्म ने शूरसेन जनपद को अपना विशिष्ट योगदान दिया।
निष्कर्षात्मक रूप से जैन धर्म शूरसेन जनपद में विशेष उन्नति पथ पर अग्रसर रहा और सभ्यता एवं संस्कृति के विविध क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान किया।