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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का योगदान
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फलस्वरूप जैन दर्शन में इनको सम्मिलित रूप से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग कहा गया है। ___ सम्यक दर्शन में सम्पूर्ण तत्व मीमांसा निहित है। सम्यक ज्ञान में ज्ञान मीमांसा, सम्यक चरित्र जीवन की एक पूर्ण आचार-संहिता है। दीर्घ अवधि के पश्चात भी जैन दर्शन के तत्व, चिन्तन और ज्ञान मीमांसा में कोई विशेष अंतर नहीं आया। आचार-संहिता युग और परिस्थतियों के अनुसार परिवर्तित होती रही है।
सिद्धान्तों की उदारता और व्यापक दृष्टिकोण के कारण ही जैन दर्शन ने विकास की इतना व्यापक सम्भावनाएँ स्वीकार की कि व्यक्ति से विराट, आत्मा से परमात्मा, मानव से महामानव और जीव मात्र में भगवान बनने की शक्ति भरी हुई है।
वाह्य एवं आन्तरिक दृष्टियों का भारतीय दर्शन में समान स्थान है। जहाँ वाह्य दृष्टि के माध्यम से ज्ञान जगत के जड़ तत्व अर्थात् सांसारिकता की जानकारी एकत्र करते हैं, वहीं आन्तरिक दृष्टि अर्थात् ज्ञान नेत्र से चेतन तत्व के सूक्ष्म से सूक्ष्मतर तत्वों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। परम तत्व की प्राप्ति के लिए दोनों पदार्थों का साक्षात्कार होना अत्यन्त आवश्यक है। सूक्ष्म पदार्थों के साक्षात्कार के लिए अर्न्तदृष्टि की आवश्यकता होती है। प्रज्ञा चक्षु ही अर्न्तदृष्टि है, जिसे दर्शन कहते हैं। दर्शन का मुख्य उद्देश्य आत्मा एवं प्रकृति का यर्थाथ ज्ञान प्राप्त करना है।
जैन दार्शनिक परम्परा में प्रत्येक द्रव्य अथवा सत् पदार्थ परिणामी होने के कारण एक धर्म को छोड़कर दूसरा धर्म ग्रहण करता रहता है। इसी स्वभाव के कारण प्रत्येक सत् का उत्पाद व्यय भी होता रहता है।"
आदि से अन्त तक जैन धर्म के सिद्धान्तों में निवृत्ति मार्ग का प्रधान स्थान है, जिसके माध्यम से व्यक्ति जगत की अनेक प्रकार की व्याधियों और तृष्णाओं से विमुक्त हो जाता है। प्रवृत्ति मार्ग में लिप्त व्यक्ति सुख और समृद्धि के लिए सर्वथा भोग और तृष्णा में व्यस्त रहता है। जैन धर्म