Book Title: Shursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Author(s): Sangita Sinh
Publisher: Research India Press

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Page 187
________________ शूरसेन जनपद में जैन धर्म का योगदान 163 25. जॉन, हर्टल; द लिटरेचर ऑफ दि श्वेताम्बर जैन्स, पृ. 376 26. गीता; 3.35 27. जैन सागरमल; धर्म का मर्म, पृ. 10 28. शास्त्री, कैलाशचन्द्र; जैनधर्म, पृ. 68 29. वाजपेयी, कृष्णदत्त तथा पाण्डेय, विमलचन्द्र; प्राचीन भारत का इतिहास, पृ. 36 30. दशवेकालिक 4-11, मूलाचार 1.5 31. आचारंग, 5/1/1 32. आचारांग, 5/1/1 33. पू.नि. 34. अहिंसा और अणुव्रत, पृ. 11-12 35. भगवती-आराधना, 784 36. उपाध्ये, पू.नि., पृ. 25 37. कोठिया, दरबारी लाल; श्रमण संस्कृति की भारतीय संस्कृति को देन; जैन सिद्धान्त भास्कर, आरा, अंक 2, पृ. 35-36, दिसम्बर 1971 38. कोठिया, पू. नि., पृ. 36, 37 39. कोठिया, पृ. नि., पृ. 36, 37 40. यादव, झिनकू; जैन धर्म की ऐतिहासिक रूप-रेखा, पृ. 179 41. मेहता, मोहन लाल; जैन धर्म-दर्शन, पृ. 358 42. उत्तराध्यान 13.6.17, 14.13, 13.26; जैनसूत्र 2.301.4 43. सरकार, डी.सी.; सेलेक्ट इन्सिक्रप्शन्स, भाग-2, पृ. 215 कलकत्ता 1965 44. उपाध्ये, ए.एन; जैन कन्ट्रीब्यूशन टु इण्डियन हेरिटेज, पृ. 22 45. मीत्तल, प्रभुदयाल; ब्रज की कलाओं का इतिहास, पृ. 76

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