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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
स्थायित्व प्रदान किया। अहिंसा पर उन्होंने विशेष बल दिया। समता के महत्व का प्रतिपादन कर उन्होंने जाति भेद का बहिष्कार किया।
शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास क्रमागत रूप से दृष्टिगोचर होता हैं महावीर स्वामी के निर्वाण प्राप्त करने के पश्चात् भी शूरसेन जनपद में प्रचार-प्रसार होता रहा। मगध में बिम्बिसार उसके पुत्र अजातशत्रु तथा नन्दवंश के शासकों ने जैन धर्म को प्रोत्साहन एवं सरंक्षण प्रदान किया। नन्दवंश के पतन के पश्चात् मगध की सत्ता पर चन्दगुप्त मौर्य का शासन स्थापित हुआ। ___ चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में सर्वविदित है कि वह अपने जीवन के अन्तिम समय में जैन धर्म अंगीकार कर लिया था। शूरसेन जनपद में मौर्य वंश के राजाओं ने अन्य धर्मों के साथ-साथ जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
शुंग सातवाहन वंश में इस जनपद में जैन धर्म अन्य धर्मों के साथ मुख्य धारा में समाहित रहा। ___ शुंगवंश के समय में शूरसेन जनपद के प्रमुख केन्द्र कंकाली टीले से एक स्तूप की प्राप्ति हुई है। प्रस्तर पट्ट के सिरदल पर स्तूप उत्कीर्ण है तथा दायें-बायें भक्तगण पूजा-अर्चना के लिए खड़े हैं। शुंग-सातवाहन वंश के शासकों ने जैन धर्म को महत्वपूर्ण योगदान प्रदान किया। __शक कुषाण शासकों ने जैन धर्म को जन धर्म बनाने में विशिष्ट भूमिका निभाई। कुषाणवंशी शासकों में प्रमुख रूप से कनिष्क एवं हुविष्क राजाओं ने शूरसेन जनपद को आर्थिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण से समृद्धशाली बनाया। ___ कुषाणकाल में मथुरा कला शैली के अन्तर्गत निर्मित पूजनीय स्तूप, चैत्यवृक्ष, धर्मवृक्ष, आयागपट्ट, ध्वज स्तम्भ, मांगलिक चिन्ह, स्वास्तिक, श्रीवत्स, विकसित कमल, मत्स्ययुग्म, पूर्णघट, त्रिरत्न, सरावसम्पुट एवं भ्रदासन प्रतिमाएं आदि कलाकृतियाँ शूरसेन जनपद में उन्नत कला का दिग्दर्शन कराती हैं। सर्वप्रथम मथुरा कला शैली के