Book Title: Shursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Author(s): Sangita Sinh
Publisher: Research India Press

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Page 186
________________ 162 शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास घाटगे, जर्नल ऑव द यूनिवर्सिटी ऑव बम्बई, जिल्द 3, भाग-4, में "शौरसेनी प्राकृत लेख"। 9. पिशल; पू. नि. : पृ. 39-43 10. मजूमदार, आर. सी.; दि क्लैसिकल एज, भाग-3, पृ. 416 11. शास्त्री नेमिचन्द्र; पू.नि., पृ. 4 12. राय, रामजी; प्राकृत भाषा और जैन धर्म-दर्शन, पृ. 13, श्रुत संवर्धिनी, अंक 9, लखनऊ, दिसम्बर 2004 13. राय, रामजी; पू. नि., पृ. 14 14. राय, रामजी; पू. नि., पृ. 15 15. पाण्डेय, राजेन्द्र; भारत का सांस्कृतिक इतिहास, पृ. 73 16. राज्य संग्रहालय लखनऊ संख्या जे. 24 17. प्रेमी, फूलचन्द जैन; मथुरा का सुप्रसिद्ध सरस्वती आन्दोलन और उसका प्रभाव, पृ. 11-13; श्रुत संवर्धिनी, अंक 10, लखनऊ, जनवरी 2005 18. प्रेमी, फूलचन्द जैन : पू.नि., पृ. 11-13 19. मजूमदार, आर.सी.; पू.नि., पृ. 415; चतुर्वेदी, रेखा; जैन आगम इतिहास एवं संस्कृति, पृ. 11, 12; मुनि, कल्याण विजय; वीर निर्वाण और जैन काल गणना, पृ. 120 20. शास्त्री, नाथूलाल जैन; तीर्थंकर दिव्य ध्वनि की भाषा; अर्हत वचन, अंक 11, पृ. 45-48 21. हार्नले; कम्परेटिव ग्रामर; भूमिका, पृ. 17 22. प्रियर्सन; सेवन ग्रामर्स ऑफ दी डाइलेक्टर्स, पृ. 240 23. भरतमुनि; नाट्शास्त्र, 17/34, पृ. 273 24. जैन, राजाराम; शौरसेनी प्राकृत का उद्गम और जैन साहित्य को उसका अवदान, पृ. 119, ऋषभ सौरभ, 1998, नई दिल्ली।

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