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अध्याय सप्तम्
शूरसेन जनपद में जैनधर्म का योगदान : भाषा, साहित्य, दर्शन एवं ललितकला
शूरसेन जनपद में जैन धर्म का योगदान विभिन्न क्षेत्रों में दृष्टिगोचर होता है। भारत का प्राचीन इतिहास धार्मिक सहिष्णुता से पूर्ण था । अनेक भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से यह देश संगठित था । एक सर्वहित लोकोपकारी संस्कृति के निर्माण में भारतीय धार्मिक सामाजिक प्रणेताओं तथा आचार्यों का अभूतपर्व योगदान रहा है ।
जैन धर्म के अन्तिम चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी थे । महावीर स्वामी तथा उनके पहले के अनेक तीर्थंकर की जन्म भूमि तथा कार्य क्षेत्र होने का गौरव बिहार के मगध प्रदेश को प्राप्त हुआ । वैदिक धर्म की मान्यताओं के प्रति अनास्था का बीजारोपण भारत में मुख्यतः मगध में प्रारम्भ हुआ। उस क्षेत्र में जैन, बौद्ध, आजीविक आदि अनेक सम्प्रदायों का उदय तथा विकास हुआ। पाटलिपुत्र, राजगृह तथा उसके आस-पास का भू-भाग इस दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय है । '
धीरे-धीरे जैन तथा बौद्ध विचार धाराओं ने सुसंगठित धर्मों का रूप प्राप्त कर लिया तथा उनका व्यापक प्रसार मगध से बाहर शूरसेन कलिंग श्रवणवेलगोला, तक्षशिला, देवगढ़, वाराणसी और विदिशा आदि स्थानों पर हुआ । शूरसेन जनपद की संस्कृति एक समुद्र के समान है, जिसमें विभिन्न जातियों, वर्गों, एवं समुदायों की मान्यताएं एवं विश्वास हैं ।