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शूरसेन जनपद में जैन वास्तुकला
अंकित है। सबसे ऊपर एक चौकोर हर्मिका का अंकन है । स्तूप के चारों ओर पताकाएँ फहर रही हैं। शोभा यात्रा के दृश्य का अंकन स्तूप पर दृष्टिगोचर होता है
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उपलब्ध साक्ष्यों से यह विदित होता है कि जैन स्तूपों के ढोलाकार शिखरों को, साँची के स्तूप संख्या एक, दो तीन की भाँति अलंकृत नहीं किया गया है।” इसका प्रमुख कारण यह है कि जैन धर्मावलम्बी इसे शुचिता का प्रतीक मानते थे, फलस्वरूप वे आडम्बरहीन स्तूपों का निर्माण कराते थे ।
मथुरा स्थापत्य, कला शैली के अन्तर्गत वेदिकाओं और तोरणों को अलंकृत निर्मित किया गया है ।
वेदिका स्तम्भ को वर्गाकार एवं अष्ट भुजाकार बनाया गया है। इनमें कला प्रतीकों का अंकन सीमित किया गया है। सबसे अधिक कमल का अंकन प्राप्त होता है।
एक वंदिका स्तम्भ के फूल्ले में कमल के बीच में स्तूप का अंकन किया गया है।
एक फलक पर स्तूप का अंकन किया गया है। * नीचे दो स्तम्भ दांये- बांये निर्मित है । एक देव नमन मुद्रा में सातफणी टोप के नीचे खड़े हैं। नीचे दो उपासक हाथ जोड़े हुए तथा एक बालक खड़ा है। अभयमुद्रा में वस्त्राभूषणों से सुसज्जित देवी खड़ी हैं। पीछे की ओर
वृक्ष की पत्तियाँ अंकित हैं। देवी व साधु के मध्य ' कण्हसमण' लेख अंकित है। स्तम्भ पर दो निकली हुई पट्टी के मध्य में दायें दो तीर्थंकर ध्यानस्थ हैं। बांये दो जिन भगवान एक पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी ध्यानस्थ हैं । इन दोनों जिनों के मध्य स्तूप को स्पष्ट दर्शाया गया । उस समय स्तूप जिन भगवान की भाँति पूज्य थे । यह कुषाणकालीन तथा लाल बलुए पत्थर पर निर्मित है । यह कंकाली की अमूल्य देन है 1
वर्णित क्षेत्र के कंकाली टीले से मसूराकार सूचियाँ उपलब्ध हैं, जिनका आकार एक समान नहीं है । स्थापत्य कला के स्तम्भ पर एक