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अध्याय षष्टम् शूरसेन जनपद में जैन संस्कृति
षोड्स महाजनपदों में शूरसेन जनपद भी अपना विशिष्ट स्थान रखता था। इस जनपद में जैन धर्म का उल्लेखनीय प्रचार-प्रसार हुआ। सर्वश्रेष्ठ कलात्मक विकास इस जनपद में दीर्घकाल तक दृष्टिगोचर होता है। शूरसेन जनपद में जैन धर्म एवं संस्कृति का सर्वोन्मुखी विकास हुआ। ___ भारत के पुरातात्विक और ऐतिहासिक सन्दर्भ में वैदिक संस्कृति और जैन संस्कृति का अस्तित्व प्राचीन काल से ही स्वीकार किया जाता
____ संस्कृति जन का मस्तिष्क है और धर्म जन का हृदय । जैन धर्म के विषय में उपलब्ध परम्परा और साक्ष्यों के अध्ययन से यह विदित होता है कि जैन धर्म का प्रारम्भ किसी व्यक्ति विशेष या स्थान विशेष से नहीं हुआ है अतः यह स्वाभाविक है कि जैन धर्म के विकास का सम्बन्ध उस काल विशेष से सम्बन्धित है, जबसे किसी पुरुषार्थी योगी ने आत्म-स्वभाव को जानने के लिए साधना की। राग-द्वेष से मुक्त आत्मविजय करने वाले व्यक्ति जिन कहलाये।
शूरसेन जनपद की राजधानी मथुरा नगरी भारत की ही नहीं अपितु विश्व की प्राचीनतम सांस्कृतिक प्रमुख नगरियों में से एक सांस्कृतिक नगरी रही है। पवित्र यमुना के दक्षिण तट पर बसी यह रम्य प्राचीनकाल से ही अध्यात्म, विविधधर्म, संस्कृति, साहित्य और विविध कलाओं आदि के क्षेत्र में अग्रणी और वैभव सम्पन्न रही है। सर्वधर्म समभाव का तो