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शूरसेन जनपद में जैन वास्तुकला
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अध्ययन क्षेत्र से प्राप्त वास्तुशिल्पीय पुरातात्विक अवशेषों की संख्या कुषाण युग के पश्चात् अल्प हो जाती है। विदेशी आक्रमणों के फलस्वरूप जैन स्थापत्य कला के उदाहरण सर्वथा नष्ट हो गये।
साधारण जनमानस ने अपने घरों के आँगन तक ही जैन वास्तुकला को सीमित कर दिया था। जैन धर्म को बौद्ध धर्म की भाँति अशोक महान् और कनिष्क जैसा सम्राट नहीं मिला, अपितु साँची, भरहुत और अमरावती के स्तूपों के समान जैन धर्म का स्तूप भी विद्यमान होता। ___ वर्णित क्षेत्र से प्राप्त कलाकृतियों के अध्ययन से यह दृष्टिगत होता है कि मन्दिर निर्माण की परम्परा बनी रही, परन्तु कोई भी सम्पूर्ण प्राचीन जैन स्थापत्य कला का पूर्ण अवशेष मन्दिर वर्तमान समय में उपलब्ध नहीं है।
उड़ीसा के और गुजरात के जूनागढ़ या गिरनार के गुहामन्दिर और निवास अपनी सूक्ष्म तक्षण कार्य की वेष्टनियों सहित और छोटी से छोटी बात और सजावट में परिपूर्ण और मथुरा के अवशेषोंके सुन्दरता से सजे तोरण व आयागपट्ट वास्तुकला के अवशेष के रूप में ही नहीं अपितु उसके जीवन्त उदाहरण हैं। संदर्भ ग्रन्थ सूची 1. फरग्यूसन, जे.; हिस्ट्री ऑफ इण्डियन एण्ड ईस्टर्न आर्किटेक्चर, भाग-2,
पृ. 24; स्मिथ, बी.ए.; ए हिस्ट्री ऑफ फाइन आर्ट इन इण्डिया एण्ड
सिलोन पृ. 11 2. कुमारस्वामी, ए. के.; दि आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट्स ऑफ इण्डिया एण्ड
सिलोन, पृ. 16 3. वाजपेयी, कृष्णदत्त; मध्यप्रदेश की प्राचीन जैन कला, अगरचन्द नाहटा
अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ. 22 4. उपाध्ये आदिनाथ; जैन कला की आचारिक पृष्ठभूमि, जैन कला और
स्थापत्य, भाग 1, पृष्ठ 45