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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
एक नारी प्रतिमा अंकित है, जो अशोक वृक्ष के नीचे दीन मुद्रा में झुके हुए बौने पुरुष की पीठ पर अपनी देह में आकर्षक आँकुचन लिए हुए खड़ी है और एक पुष्पकाल से अपना केश विन्यास कर रही है। 57
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सोपान की वेदिकाओं पर उत्कीर्ण शिल्पांकन भी कलात्मक दृष्टि से उत्कृष्टतम् है। एक तीरछे स्तम्भ पर अशोक वृक्ष के नीचे एक अपने वाम हाथ को ऊपर उठाये हुए, जिस पर एक थाली स्थित है । थाली में कुछ वस्तुएं रखी हैं। और जिस पर शंकु के आकार का ढक्कन लगा हुआ है।
नारी अपने दाहिने हाथ में एक मूँठ वाला पात्र पकड़े हुए है, जिसका तल ऊँचा है। पृष्ठ भाग पर कमल कला - पिण्ड का अंकन दृष्टिगोचर होता है। यह वेदिका-स्तम्भ कुषाण युगीन है। 58
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वास्तुकला के अभिन्न अंग में प्रयुक्त होने वाले दो टोडे कंकाली टी के उत्खनन द्वारा प्रकाश में आये । टोडे भिन्न प्रकार के हैं तोरण के टोडे में शालभंजिकाओं का अंकन दृष्टिगोचर होता है । दोनों तोरण-तोडो के आधार में एक चूल है जो स्तम्भ के कोटर में स्थित कर दी जाती थी । 39
तोरण स्तम्भों में कुषाण कालीन स्तम्भों के शिल्पांकन विशेष रूप महत्पूर्ण हैं। इनमें से एक अभिलिखित है, जिसमें श्राविका बल हस्तिनी द्वारा एक तोरण के समर्पण का वर्णन है। 60
साँची के समान इन स्तम्भों के दो पार्श्व नीचे से ऊपर की ओर अनेक फलकों में बँटे हुए हैं ।
वास्तुशिल्प के एक तोरण में दो सुपर्ण जो आधा मनुष्य- आधा पक्षी है और पाँच किन्नरों द्वारा स्तूप अर्चना का दृश्य दृष्टिगोचर होता है । पाँचों किन्नरों के सिर पर पगड़ी है जैसा कि बौद्ध शिल्प में अभिजात्यवर्ग के मनुष्यों के दिखाई देती है । जहाँ सुपर्णस्तूप की अर्चना कर रहे हैं, साँची के उभरे हुए शिल्प में दृष्टव्य है 162