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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
जनपद का नाम शूरसेन तथा उसकी राजधानी मथुरा का महत्वपूर्ण स्थान है। शूरसेन जनपद को 'ब्रह्मर्षिदेश' के अन्तर्गत माना गया है।' ब्रह्मर्षिदेश एवं ब्रह्मावर्त को प्राचीन समय में बहुत ही पवित्र माना जाता था और यहां के निवासियों का आचार-विचार श्रेष्ठ एवं आदर्शरूप माना जाता था।
मथुरा शूरसेन जनपद की राजधानी थी। इसकी स्थापना राम के भाई शत्रुघ्न ने की थी। शत्रुघ्न के एक पुत्र का नाम शूरसेन था जिसके नाम पर इस देश का नाम शूरसेन पड़ा। शत्रुघ्न ने मधुवन में यादव लवन को मारकर और जंगल को काटकर इस जनपद की स्थापना की थी।
शूरसेन जनपद के उत्तर में कुरूदेश (आधुनिक दिल्ली और उसके आसपास का प्रदेश) था, जिसकी राजधानी इन्दप्रस्थ तथा हस्तिनापुर थी। दक्षिण में चेदि राज्य (आधुनिक बुन्देलखण्ड तथा समीप का कुछ भाग) था, जिसकी राजधानी सूक्तिमति थी। शूरसेन जनपद के पूर्व में पांचाल राज्य आधुनिक रूहेलखण्ड था, जो दो भागों में बंटा था। उत्तर पांचाल जिसकी राजधानी अहिच्छत्रा बरेली जिले में वर्तमान रामनगर
और दक्षिण पांचाल जिसकी राजधानी काम्पिल्य (आधुनिक कम्पिल, जिला फर्रुखाबाद) थी। पश्चिम में मत्स्य जनपद (आधुनिक अलवर रियासत तथा जयपुर का पूर्वी भाग) था। इसकी राजधानी विराट नगर (वर्तमान वैराट), जयपुर में थी।"
शूरसेन जनपद की यह संज्ञा ईसवी सन् के प्रारम्भ तक जारी रही। शूरसेन जनपद पर विदेशी शक-कुषाणों के अधिकार करने के बाद जनपद की संज्ञा उसकी राजधानी के नाम पर मथुरा प्रचलित हो गई। वराहमिहिर ने भी मध्यदेश के जनपदों की गणना करते समय ‘माथुरक' तथा 'शूरसेन' का उल्लेख किया है।'
जैन ‘हरिवंश पुराण' में प्राचीन भारत के अट्ठारह महाराज्यों का उल्लेख किया गया है, उसमें शूरसेन प्रदेश और उसकी राजधानी मथुरा का नाम भी उल्लेख है।