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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
प्राप्त पुरावशेषों से स्पष्ट होता है कि जैन धर्म सदैव जन धर्म के रूप में सर्वदा विद्यमान और प्रगतिशील रहा। संदर्भ ग्रन्थ सूची 1. गरुड़ पुराण, 2:28.3 2. मनुस्मृति, 2-17, 19, 20 3. जिनसेनाचार्य; महापुराण, पर्व 16, श्लोक 155 4. जिनप्रभसूरि, 'विविध तीर्थकल्प' पृ. 17, 85 5. विवाग सूय, 6 6. 40, 6-58 7. अध्याय, 10 8. तृतीय वर्ग, सूक्त 4 9. कल्पसूत्र, पृ. 267 10. उपासकदशा, 7 वां अंग 11. समवायांग सूत्र, 11 12. जैन, जगदीशचन्द्र; जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ. 17 13. आचार्य हेमचन्द्र; परिशिष्टपर्वन, 9.54, मुखर्जी, आर. के.; चन्द्रगुप्त मौर्य
एण्ड हिज़ टाइम्स, पृ. 39-41 । 14. जैन, ज्योतिप्रसाद; उत्तर प्रदेश में जैन धर्म का उदय और विकास, पृ.
8-10। 15. थापर, रोमिला; अशोक एण्ड दि डिक्लाइन ऑव दि मौर्यज, पृ. 137-82,
मुखर्जी, आर. के.; अशोक, पृ. 54-55 । 16. आचार्य हेमचन्द्र; पू.नि. 9.54 17. यादव, झिनकू; जैन धर्म की ऐतिहासिक रूपरेखा, पृ. 48 18. बृहतकल्पसूत्र भाष्य, 3, 3275-89