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शूरसेन जनपद में जैन मूर्तिकला
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आयागपट्ट जिसे डॉ. ब्यूहलर ने पूजाफलक के रूप में परिभाषित किया है। वर्णित क्षेत्र की जैन शिल्पाकृतियों में इनका महत्वपूर्ण स्थान है।
स्तूप के आँगन में ऊँचे स्थान पर इन आयागपट्टों को स्थापित किया जाता था और धर्मानुयायी उनकी पूजा करते थे। इन पर सुन्दर अलंकरणों का कलात्मक संयोजन भी प्राप्त होता है। ___ मथुरा से प्राप्त क्षतिग्रस्त आयागपट्ट मिला है; जिसमें सर्व प्राचीन भगवान पार्श्वनाथ का अंकन किया गया है। यह अभिलिखित है लेकिन लेख का अधिकांश भाग भग्न है। लेख के शेष भाग से यह प्रकट होता है कि यह आयागपट्ट शिवघोषा ने निर्मित करवाया था।
इसका बायाँ भाग अत्यधिक खण्डित है। चारों कोनों पर दो हाथी, सांप, सिंह, हिरण, मधु क्षत्रप का अंकन किया गया है। वृत्त के भीतर उभरी हुई आसन चौकी पर पद्मासनस्थ तीर्थंकर अंकित है। इनके ऊपर सप्तफणों का छत्र और उस पर दो फूलों की मालाएँ दायें-बायें लटक रही हैं। प्रयाण मुद्रा में दोनों ओर एक-एक विवस्त्र गणधर अंकित हैं जो जिन प्रतिमा की ओर मुँह किये हुए खड़े हैं। इस आयागपट्ट में पार्श्वनाथ का
अंकन विशेष महत्वपूर्ण है। ___एक अभिलिखित आयागपट्ट मथुरा से शुंगकाल का प्राप्त हुआ है। यह चित्तीदार पत्थर से निर्मित है। कमल की बड़ी-बड़ी पत्तियों से नीचे का भाग बनाया गया है तथा शेष भाग को छोटी पत्तियों से पूर्ण किया गया है। ऊपर त्रिरत्न, आगे किसी अलंकरण का अन्तिम छोर, ऊपर दर्पण, टूटे भाग पर फूल, भद्रासन अंकित है।
शुंगकालीन एक आयागपट मथुरा से प्राप्त हुआ। इस प्रकार ध्वज एवं सिंह ध्वज का अंकन दोनों ओर किया गया है। दायीं ओर से शंख, स्वास्तिक, उल्टा घंट, कमल की कलियों का गुच्छा फूल के साथ, कल्पवृक्ष और पत्रों पर रखा हुआ फूलों का दोना बना हुआ है।
अष्टमांगलिक प्रतीकों का अंकन सबसे नीचे की पट्टी पर किया गया है जिनका दायीं ओर से क्रम इस प्रकार है खण्डित श्रीवत्स,