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शूरसेन जनपद में जैन मूर्तिकला
धर्म चक्र का वर्णन जैन ग्रन्थ में मिलता है । 131 कंकाली टीले से सिंह स्तम्भ शीर्ष शुंग काल का प्राप्त हुआ है जो महावीर स्वामी की प्रतीक पूजा का अंकन है | 132
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एक द्वार शाखा पर सामने की ओर दो-दो फलक है तथा दूसरी ओर रानियों के मध्य में राजा व एक युगल का अंकन किया गया है । वेदिका स्तम्भ एवं दो खम्भों का अंकन है ।
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कुषाणकालीन एक त्रिरत्न वर्णित क्षेत्र से प्राप्त हुआ है जो लाल बलुए पत्थर पर निर्मित हैं खिले कमल के समान चक्र बनाया गया है। 133
जैन धर्म में त्रिरत्न को सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान एवं सम्यक् चरित्र को त्रिरत्न के माध्यम से व्यक्त किया गया है । इसी प्रकार भागवत धर्म में तीन अमृतपद (दम, त्याग एवं अप्रमाद) का अभिलिखित साक्ष्य बेसनगर, विदिशा से गरूण ध्वज स्तम्भ पर प्राप्त होता है । 134
अध्ययन क्षेत्र के सोंख नामक स्थान से एक मृत्तिका पंचागुल प्राप्त हुआ है। इससे यह प्रकट होता है कि चन्दन या पीठी से पंचागुल का प्रतीक न केवल चित्रित किये जाते थे अपितु मांगलिक अवसरों पर उनके मूर्त स्वरूप का भी उपयोग किया जाता था ।
जैन, ब्राह्मण एवं बौद्ध धर्मों में मंगल कलश का अंकन प्राप्त होता है । मंगल कलश को स्तम्भ का आधार मन्दिर के शिखर तथा प्रतिमाओं में त्रिछत्र के ऊपर अंकित किया जाता है । साँची, मथुरा, अनुराधापुर, भरहुत, बोरोबुदूर आदि स्थानों पर पत्तियों, कलियों, कमल पुष्पों सहित पूर्ण कलश का अंकन किया है। 136
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एक पूर्ण कलश पत्थर के द्वार के मध्य में स्थापित है । यह लाल चित्तीदार पत्थर पर दो भागों में है, लेकिन नीचे का भाग आधा ही सुरक्षित है। कलश के मुख पर कमल की कलियाँ निकली हैं । 137
जैन धर्म में स्वास्तिक एक लोकप्रिय मांगलिक चिन्ह है । 138 यह सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का लांछन है । जैन धर्मानुयायी स्वास्तिक को ‘सिद्धम' के समकक्ष पूज्य मानते हैं