________________
शूरसेन जनपद में जैन मूर्तिकला
दसवीं शती की एक ऋषभनाथ की ध्यान मुद्रा में प्रतिमा वर्णित क्षेत्र से प्राप्त हुई है।15 यह प्रतिमा लांछन एवं यक्षयक्षीरहित है। परन्तु अगल-बगल कृष्ण एवं बलराम को उत्कीर्ण किया गया है।
नेमिनाथ की एक अन्य प्रतिमा जो दसवीं शती की है। इसमें भगवान के कन्धों पर जटाएं उत्कीर्ण हैं। 16
दसवीं शती की एक पीले बलुए पत्थर से निर्मित जिन चौमुखी बटेश्वर से प्राप्त हुई है।' पार्श्वनाथ के मस्तक पर सात सर्पफणों को दर्शाया गया है जिसके सभी फण क्षतिग्रस्त है। मस्तक पर धुंघराले बाल हैं। कान व हाथ लम्बे हैं। तीर्थकर की प्रतिमाओं का ऊपरी भाग गोल खम्भे का भाग है, जो खण्डित है। ___ कंकाली टीले से प्राप्त एक जिन चौबीसी दसवीं शती की प्राप्त हुई है; जो ब्राह्मी लिपि में अभिलिखित है तथा लाल चित्तीदार बलुए पत्थर पर अंकित है।18 मूलनायक ऋषभ पद्मासनस्थ हैं। वे दो सिंहों द्वारा वाहित सिंहासन पर विराजमान है।
मूलनायक ऋषभदेव पद्मासनस्थ हैं। सिंहासन के मध्य में चक्र है। अलंकृत प्रभामण्डल हैं मूल प्रतिमा के दायें-बायें नीचे से ऊपर आठ-आठ जिन कमल दल पर आसीन है। ऊपर के पट पर सात जिन हैं, सबको मिलाकर चौबीस जिन हैं।
कंकाली टीले से ग्यारहवीं शती ई. की अभिलिखित सर्वोतोभद्रिका प्रतिमा प्राप्त हुई है।19
जिनों के वक्ष पर श्रीवत्स का अंकन है। यह चौमुखी पद्मासनस्थ है। चरण चौकी के मध्य में चक्र अंकित है तथा दोनों ओर सिंह का अंकन है। एक ओर प्रतिमा खण्डित है।
बटेश्वर से बारहवीं शती की गुलाबी रंग की नेमिनाथ की पचतीर्थी प्राप्त हुई है। 0 देवगढ़ से दसवीं और बारहवीं शती के मध्य की तीस से अधिक नेमिनाथ की प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं। इन मूर्तियों पर शंख का