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शूरसेन जनपद में जैन मूर्तिकला
गुप्तकालीन ऋषभनाथ की एक प्रतिमा कंकाली टीले से प्राप्त हुई है।102 प्रतिमा का मस्तक खण्डित है। प्रतिमा ध्यानस्थ मुद्रा में। दाहिनी
ओर एक उपासक खड़ा है। नीचे चरण चौकी पर दोनों ओर सिंह का अंकन एवं मध्य में चक्र स्थित है। चक्र के दोनों ओर एक-एक मुनि ध्यानस्थ हैं।
मध्य प्रदेश के सीरा पहाड़ी से ऋषभनाथ की एक खड्गासन प्रतिमा उपलब्ध हुई है।103 विदिशा से तीन गुप्तकालीन प्रतिमाएं प्राप्त हुई है, जो सम्प्रति विदिशा संग्रहालय में है। इनके लेखों में महाराजाधिराज रामगुप्त का उल्लेख है।104
गुप्तकालीन एक ध्यानस्थ महावीर की प्रतिमा भारत कला भवन, वाराणसी में संग्रहीत है। इसमें लांछन सिंह का अंकन है।105
राजगीर से गुप्तकालीन चार जिन मूर्तियाँ मिली हैं जो अभिलिखित है। ध्यानस्थ सिंहासन पर विराजमान जिन की पीठिका के मध्य में चक्र, पुरुष और उसके दोनों ओर शंख उत्कीर्ण है। शंख नेमिनाथ का लांछन है।106
गुप्तकालीन दो प्रतिमाएं विक्टोरिया अल्बर्ट संग्रहालय लन्दन में है ।107
वर्णित क्षेत्र से आठवीं शती ई. की जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभनाथ की प्रतिमा लाल बलुए पत्थर पर निर्मित है, प्राप्त हुई है।108
भगवान ऋषभनाथ का मुख खण्डित है। प्रतिमा पद्मासनस्थ है। मस्तक के पीछे अलंकृत प्रभामण्डल अंकित है। सबसे ऊपर तीन मुनि ध्यानमुद्रा में आसीन हैं। तीर्थंकर के मस्तक के ऊपर स्तूप आकृति का घटाटोप है। दोनों ओर उड़ते हुए विद्याधर तथा जिन के दायें-बायें एक-एक स्त्री आकृति का अंकन किया गया है। चरण-चौकी के नीचे मध्य में चक्र अंकित है।
कंकाली टीले से 981 ई. की जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ की अभिलिखित प्रतिमा प्राप्त हुई है।100 भगवान पार्श्वनाथ ध्यानमुद्रा में पद्मासनस्थ है। आँखें अर्द्ध-उन्मीलित हैं।