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शूरसेन जनपद में जैन वास्तुकला
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यमुना नदी के तट पर अर्द्ध-चन्द्राकार मथुरा को बसाकर शूरसेन जनपद को राजधानी बनाया।12 ___ मथुरा की वह प्रथम बस्ती, वर्तमान नगर के दक्षिण-पश्चिम की दिशा में उस स्थान पर बसी थी, जिसे आज महोली कहते हैं।
जैन धर्म में ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् महान पुरुषों को 'तीर्थंकर' कहा गया है और उनकी संख्या चौबीस मानी गई है। पौराणिक दिव्य महापुरुषों में ऋषभदेव से लेकर नेमिनाथ तक को स्वीकार किया जाता
है।
भगवान पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी को ऐतिहासिक महापुरुष मानते हैं। ___ आदिकाल से ही शूरसेन की प्रसिद्धि एक प्रमुख धार्मिक क्षेत्र के रूप में रही। सातवें तीर्थंकर के सम्मान में कुबेरा देवी ने कंकाली टीले पर एक स्तूप का निर्माण करवाया था, जिसे 'देव निर्मित' स्तूप' भी कहा जाता था। _ 'स्तूप' शब्द मूलतः संस्कृत भाषा का है, जिसका अर्थ होता है ‘ढेर' या ‘टीला' । ऋग्वेद में ‘अग्नि स्तूप' एवं 'हिरण्य स्तूप' शब्दों का उल्लेख हुआ है। ___ प्रारम्भ में उल्टे कटोरे के समान स्तूप की रचना हुई। कालान्तर में मिट्टी के टीलों पर ईंटों की चिनाई की जाने लगी। आगे चलकर उन्हें ईंट-पत्थरों से पक्का भी बनाया जाने लगा। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुये स्तूपों के चारों ओर पहले लकड़ी के बाड़े लगाये जाते थे। कालान्तर में ईंट-पत्थरों द्वारा चौकोर घेरे बनाए जाने लगे थे।
वर्णित क्षेत्र के कंकाली टीले का स्तूप विशेष महत्वपूर्ण था। इसी के फलस्वरूप वर्णित क्षेत्र को जैन तीर्थ का महत्व प्राप्त हुआ था।"
'जिनप्रभसूरि' ने 'विविधतीर्थ कल्प' में भी उल्लेख किया है कि शूरसेन में सुपार्श्वनाथ के विहार के पश्चात् कुबेरा देवी ने एक रत्नजटित स्वर्ण स्तूप का निर्माण कराया था।