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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
होकर खड़ी हैं। एक बालक को गोद में लिए दायां हाथ उठाए स्त्री आवक्ष और अन्त में भ्रदासन का अंश दृष्टिगोचर हो रहा है
प्रोफेसर लूमान एवं स्मिथ ने कल्पसूत्र के" आधार पर यह मत व्यक्त किया है कि दृश्यपट्ट में नैगमेष द्वारा महावीर के भ्रूण को ब्राह्मणी देवनन्दा के गर्भ से संक्रामित कर क्षत्राणी त्रिशला के गर्भ में स्थापित किया गया है। इसे ब्यूलर ने भी स्वीकार किया। 18
परन्तु एक अन्य मत यह है कि सत्यभामा जो श्रीकृष्ण की पटरानी थी रुक्मिणी से ईर्ष्या करती थी। उन्होंने चाहा कि रुक्मिणी से पहले और सुन्दर पुत्र उनको प्राप्त हो । जैन हरिवंश पुराण एवं अन्य ग्रन्थों में भी यही प्रसंग उल्लिखित है । सत्यभामा पुत्र प्राप्त कर नैगमेष की अर्चना के लिए गईं हो, यह दिखलाया जा सकता है। रुक्मिणी भी गई थीं । 19
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“अन्तगड्दसाओ” में पुत्र प्राप्ति के लिए हरनैगमेषी के पूजन और प्रसन्न होकर देवता द्वारा गले का हार देने का उल्लेख है । इसी फलक के पीछे नृत्य के दृश्य का अंकन है जो पुत्रोत्सव के सन्दर्भ का द्योतक है।
जैन ग्रन्थ” में यह कथा वर्णित है कि इन्द्र ने जब नृत्यांगना नीलांजना की आयु पूर्ण होने पर उसके स्थान पर एक अन्य अप्सरा को नृत्य के लिए उपस्थित कर देते हैं तथा ऋषभदेव को उसकी मृत्यु का ज्ञान हो जाता है और संसार की असारता देखकर उनका हृदय वैराग्य एवं विरक्ति से भर जाता है । इस प्रकार वैराग्य की अनुभूति होने के पश्चात् वे उठकर चलते हैं तथा पट्ट पर तप करते हुए भी अंकित हैं ।
इस प्रकार का नीलांजना पट्ट आबू गुजरात से उपलब्ध है जो सियाटल कला संग्रहालय में सुरक्षित है। 2
शुंगयुग में तीर्थकर प्रतिमाओं का अंकन आयागपट्ट के मध्य किया गया है । शुंग वंश की स्वतन्त्र जिन प्रतिमाओं का वर्णित क्षेत्र में अभाव है ।