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शूरसेन जनपद में जैन मूर्तिकला
जिनों के बाल घुघराले तथा तीन पर प्रभामण्डल निर्मित है। लेख में ‘सर्वतोभद्रिका' उत्कीर्ण है।
एक जिन चौमुखी का खण्ड मात्र सन् 96 ई. की प्राप्त हुई है। यह अभिलिखत है। इसे मोहिनी के दान से स्थापित किया गया था। ___ एक बहुत ही महत्वपूर्ण जिन चौमुखी कंकाली टीले से प्राप्त हुई है जिस पर भगवान ‘शान्तिनाथ' के नाम के साथ ‘भगवतो' भी उत्कीर्ण है। किसी भी प्रतिमा पर श्रीवत्स का अंकन नहीं है। यह कनिष्ककालीन प्रतिमा है। ___ एक चौमुखी अभिलिखित है जिस पर 'अरहन्त प्रतिमा सर्वतोभद्रिका'75 उत्कीर्ण है। स्तम्भ पर धर्म चक्र का अंकन है। यह कुषाणकालीन कंकाली से मिली है।
एक अन्य सम्पूर्ण अभिलिखित जिन चौमुखी लाल चित्तीदार पत्थर पर उत्कीर्ण है। यह मथुरा से मिली है। चारों जिन खड्गासन मुद्रा में हैं तथा केश धुंघराले हैं वक्ष पर श्रीवत्स का चिन्ह अंकित है। सातफणों के प्रदर्शन से पार्श्वनाथ की पहचान सम्भव है। चरण-चौकी पर लेख उत्कीर्ण है।
अध्ययन क्षेत्र के कंकाली टीले से सरस्वती देवी की एक प्रतिमा अभिलिखित कनिष्क कालीन प्राप्त हुई है। यह 54.61 सेंमी. ऊँची है।
प्रारम्भिक जैन ग्रन्थों में सरस्वती के अन्य नामों का उल्लेख मेधा एवं बुद्धि की देवी या श्रुत देवी के रूप में प्राप्त होता है।" ___ प्रतिमा का मस्तक क्षतिग्रस्त है। सम्पूर्ण शरीर धोती से ढका है जो बायें कंधे पर रखी है। दोनों हाथों में कंगन है तथा बायें हाथ में पुस्तक है। दाहिना हाथ भग्न है लेकिन इसमें माला के कुछ दाने दृष्टव्य हैं।
उपासक अर्चना के लिए बायीं ओर खड़े हैं। दायीं ओर एक पुरुष अपनी बायीं कलाई पर वस्त्र खण्ड लटकाए और दायें हाथ में कमण्डल लिए खड़ा है।