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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
द्वितीय शती ई. की वर्धमान प्रतिमा अभिलिखित प्राप्त हुई है। वक्षस्थल पर श्रीवत्स तथा तलुवों पर चक्र व त्रिरत्न अंकित है। मध्य में चक्र एवं सिंह का अंकन दृष्टव्य है।
यह सभी प्रतिमाएं प्रतिमा शास्त्र के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण
___ सर्वतोभद्रिका प्रतिमा की दृष्टि से कुषाण काल अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि इनका निर्माण इसी समय प्रारम्भ हुआ। सर्वतोभद्रिका का तात्पर्य है कि वह प्रतिमा जो सभी ओर से शुभ या मंगलकारी हो, अर्थात् एक ही प्रस्तर खण्ड पर चारों ओर चार प्रतिमाएं अंकित हो ।
चौमुखी प्रतिमाओं मे सर्व प्राचीन प्रतिमा लाल बलुए पत्थर पर निर्मित है जो कंकाली टीले से मिली है। यह अभिलिखित है तथा 83 ई. में इसको स्थापित किया गया है। ____ एक चौमुखी लाल बलुए पत्थर पर निर्मित हैं सर्पफणों के छत्र से पार्श्वनाथ की पहचान सम्भव हुई है। ___ चौसा से एक सात सर्पफणों से युक्त पार्श्वनाथ की प्रतिमा उपलब्ध हुई है जो कुषाणकालीन है।69 ____ अन्य तीन जिनों की पहचान नहीं हो सकी हैं चरण चौकी पर उपासक एवं उपासिकाओं का अंकन किया गया है। एवं मध्य स्तम्भ पर चक्र अंकित है। ___ एक चौमुखी प्रतिमा का अभिलिखित अधोभाग भूतेश्वर से प्राप्त हुआ है। ___ अन्य सर्वतोभिद्रका प्रतिमाओं में विशेष उल्लेखनीय है जो लाल बलुए पत्थर पर निर्मित है।"
राज्य संग्रहालय लखनऊ में भी जिन चौमुखी संरक्षित हैं। एक अभिलिखित चौमुखी कनिष्क काल की कंकाली टीले से प्राप्त हुई है। सर्पफण के आधार पर पार्श्वनाथ की पहचान की गई है। चारों जिनों के वक्ष पर श्रीवत्स अंकित है।