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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
तीन महिलाओं को साड़ी पहने हुए तथा एक हाथ से सम्भाले हुए और दूसरे हाथ में मोटी माला जिसके फूल ऊपर की ओर खिले हुए दिखाए गए हैं। छोटी आकार की सेविका हाथ जोड़े खड़ी है। ___तीनों स्त्रियाँ लम्बी स्वस्थ एवं तीखे नाक, नक्श वाली हैं, इन पर गान्धार शैली का प्रभाव देखा जा सकता है क्योंकि अन्य जैन प्रतिमाओं की चौकियों पर उत्कीर्ण महिलाएँ, श्राविकाएं, साध्वियाँ इनके आकार की अपेक्षा छोटी हैं। ___ फलस्वरूप इन्हें विदेशी स्त्रियों की श्रेणी में अभिहित किया गया है। जैन धर्म के प्रति इनकी श्रद्धा को अंकित किया गया है, जो अर्हन्त पूजा में आईं। ऐसी आकृतियाँ, गान्धर प्रतिमाओं में ही दृष्टिगत होती हैं।
जैन धर्म के बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ की एक ध्यानस्थ प्रतिमा कंकाली टीले से प्राप्त हुई है। यह प्रथम शती ई. की प्रतिमा है। __ प्रतिमा में चतुर्भुज बलराम की ऊपर भुजाओं में गदा और हल का अंकन किया गया है। चतुर्भुज कृष्ण को वनमाला से शोभित दर्शाया गया है। उनकी तीन अवशिष्ट भुजाओं में अभयमुद्रा, गदा और पात्र अंकित है। ___ यह लाल बलुए पत्थर पर निर्मित है। चरण-चौकी के मध्य भाग में स्तम्भ पर धर्मचक्र स्थित है। इसके दक्षिण ओर दो उपासक और वाम भाग पर दो उपासिकाएँ अंकित है। यह प्रतिमा ब्राह्मी में अभिलिखित है जिसमें अर्हन्त एवं सिद्ध को नमन किया गया है। प्रतिमा का अधिकांश भाग क्षतिग्रस्त है।
कुषाणकालीन दो अन्य नेमिनाथ की ध्यानस्थ प्रतिमाओं में केवल बलराम की ही मूर्ति उत्कीर्ण है।*
सात सर्पफणों के छत्र से युक्त द्विभुज बलराम नमस्कार मुद्रा में है। चरण-चौकीको दो सिंह उठाये हुए हैं। इसके मध्य में स्तम्भ पर चक्र तथा दोनों ओर दो-दो उपासक एवं उपासिकाएँ अंकित हैं। चरण-चौकी पर लेख उत्कीर्ण था जो इस समय पर्याप्त घिसकर मिट चुका है। प्रतिमा का