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शूरसेन जनपद में जैन धर्म के प्रमुख केन्द्र
मुनियों जैसे मुनि श्री यम, श्री धन्य एवं श्री विमलासुत की निर्वाण भूमि मानी जाती है। इसका उल्लेख पौराणिक साहित्य में प्रस्तुत है।"
जिन प्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के चतुरशीति महातीर्थ नामक संग्रह के अन्तर्गत शौरीपुर का उल्लेख किया है और इस क्षेत्र में नेमिनाथ मन्दिर होने का भी उल्लेख किया है।
एक कथा इस प्रकार उल्लिखित है कि सप्रतिष्ठ नामक मुनिराज रात्रि के समय ध्यान मुद्रा में थे। पूर्व जन्म के विरोध के कारण सुदर्शन नामक यक्ष ने मुनिराज पर घोर उपसर्ग किया मुनिराज अविचल रहे। कुछ समय बाद उन्हें लोकालोक प्रकाशक केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। वे सर्वज्ञ सर्वदर्शी बन गए। कुछ समय पश्चात् शौरीपुर नरेश यादववंशी अन्धकवृष्णि और मथुरा नरेश भोजकवृष्णि ने जो दोनों भाई-भाई थे, इन्हीं केवलि भगवान के निकट मुनि-दीक्षा ग्रहण की। ___ मुनि धन्य को भगवान नेमिनाथ के उपदेश से सिद्ध पद प्राप्त हुआ। शौरीपुर का राजा खाली हाथ शिकार से वापस आ रहा था। उसी समय मुनि धन्य को उसने ध्यान मग्न देखा। राजा ने सोचा कि इन नग्न मुनि के कारण ही उसे कोई शिकार प्राप्त नहीं हुआ। इस कारण मूर्ख राजा ने वीतराग मुनि धन्य को तीक्ष्ण बाणों से बांध दिया। कर्मों को नष्ट कर मुनि धन्य ने सिद्ध पद प्राप्त किया। ___ कर्नल टॉड ने 19वीं शती में शौरीपुर की प्राचीनता की ख्याति सुनी थी। कर्नल टॉड के अनुभव से यह ज्ञात होता है कि शौरीपुर नगर ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में एक व्यापारिक केन्द्र था।। __ बाख्नी वंश के यूनानी राजा अपोलोडोट्स और पार्थववंशी नरेशों का काल ईसा पूर्व दूसरी-तीसरी शताब्दी माना जाता है। व्यापारिक उद्देश्य से यूनानी एवं पार्थियन सिक्के आते थे।" _19वीं शती के अन्तिम दशक में जनरल कनिंघम के सहकारी ए.सी. एल. कार्लाइल" ने शौरीपुर के खण्डहरों के सर्वेक्षण किए। कार्लाइल ने शौरीपुर के विस्तृत भग्नावशेषों के विषय मे लिखा है कि यहाँ के लोगों