________________
शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
में एक किवदन्ती प्रचलित है कि प्राचीन काल में एक रानी शौरीपुर से होकर जा रही थी। उसने सामने स्थित भवनों के विषय में पूछा। उसे जब यह ज्ञात हुआ कि यह सभी भवन जैनों के हैं तो उसने उन्हें नष्ट करने की आज्ञा दे दी। ___कार्लाइल को शौरीपुर में एक गड्ढे में एक पद्मासनस्थ जैने प्रतिमा प्राप्त हुई। एक अन्य प्रतिमा आदिनाथ की 1025 ई. की प्राप्त हुई है। ____11वीं-12वीं शती की दो तीर्थंकर प्रतिमाएं शौरीपुर से कार्लाइल को प्राप्त हुई। यह पद्मासनस्थ प्रतिमाएं हैं। ___ शौरीपुर के पंचमढ़ी नामक स्थान से 11-12वीं शती की तीन प्रतिमाएं बुलआई पाषाण की भूरे रंग की मिली हैं दो प्रतिमाएं महावीर स्वामी की हैं क्योंकि उनके पार्श्व पर सिंह का लांछन अंकित है। तीसरी प्रतिमा पर कमल का अंकन है अतः यह नेमिनाथ की मूर्ति है। यह प्रतिमाएं अभिलेख विहीन है। __ शौरीपुर के भट्टारकों द्वारा बनवाया हुआ एक विशाल जैन मन्दिर और धर्मशाला है। इस मन्दिर में परिमाल चन्देल के प्रसिद्ध सेनानी आल्हा के पुत्र जल्हण द्वारा 1176 ई. में अजितनाथ की प्रतिमा प्रतिस्थापित की गई जो महोबा से लाई गई है, ऐसा बताया जाता है कि गाँव में यह मनियादेव के नाम से प्रसिद्ध है।"
संदर्भ ग्रन्थ सूची 1. बाजपेयी, कृष्णदत्त; भारत के सांस्कृतिक केन्द्र मथुरा, पृ. 108; घोष,
अमलानन्द : कला एवं स्थापत्य खं. 1, पृ. 51 2. 10, 75 3. विष्णु पुराण, 1/12/4 4. मेक्रिण्डिल; ऐश्येन्ट इण्डिया एज डिस्क्राइब्द बाई टालेमी, पृ. 98 5. इण्डियन एण्टिक्वेरी, सं. 20, पृ. 375 6. लेग्गे, जेम्स; टि, ट्रेवेल्स ऑफ फाह्यान, पृ. 42