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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
पर वस्त्र खण्ड लिए जैन मुनि हैं। इसके पीछे तीन पुरुष उपासक हैं। अन्तिम व्यक्ति परिधान से शक प्रतीत होता है। चक्र के दूसरी ओर तीन महिला उपासिकाएं माला और पुष्प लिए हैं। यह अभिलिखित है। अभिलेख का भाव है कि देवपुत्र शाहि कनिष्क के 17वें वर्ष के शीत ऋतु के दूसरे महीने के 25वें दिन कोट्टियगण की बईरा शाखा के सांतिनिक कुल की कौशिकी गृहरक्षित की प्रेरणा पर इस प्रतिमा की स्थापना हुई। यह मथुरा संग्रहालय में स्थित है।
जनरल गंज
जनरल गंज से तीर्थंकर पार्श्वनाथ की बैठी हुई ध्यानस्थ प्रतिमा मिली है। इस पर सात सर्पफणों का अंकन मिलता है। यह लाल बलुआ पत्थर पर निर्मित है। नीचे के भाग पर नागरी लेख लिखा है। लेख के अनुसार संवत् 1071 = 1014 ई. में वणिक जसराक की पत्नी सोमा ने दान दिया था। यह 1.17 सेंमी. ऊँची है तथा मथुरा संग्रहालय में स्थित है।
बलभद्र कुण्ड
बलभद्र कुण्ड से एक जैन तीर्थंकर की मूर्ति मिली है। यह प्रतिमा इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसमें तीर्थंकर का नाम ऋषभनाथ दिया है। तीर्थंकर ध्यान भाव में आसीन हैं, सिर और भुजा लुप्त है, हस्तिनखा प्रणाली से उत्कीर्ण प्रभामण्डल का कुछ भाग शेष है। वक्ष पर श्री वत्स का चिन्ह है तथा हथेली और तलवें पर धर्मचक्र का अंकन है। चरण चौकी पर धर्मचक्र और दस पुरुष व स्त्री उपासक हैं। लेख के अनुसार भगवान अर्हत ऋषभदेव की इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा महाराज राजाधि राज देवपुत्र शाही वासुदेव के राज्यकाल सं. 84 अर्थात् 162 ई. में कुमारदत्त की प्रेरणा से भट्टदत्त उगभिनक की पुत्रवधू ने कराई थी। यह लाल बलुए पत्थर से निर्मित है ।2 यह वर्तमान में मथुरा संग्रहालय में स्थित है।