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शूरसेन जनपद में जैन धर्म के प्रमुख केन्द्र
जैन तीर्थकरों के अतिरिक्त जैन देवी जैसे जैन सरस्वती की प्रतिमा प्राप्त हुई है जो कुषाण युग की है।
कंकाली टीले से प्राप्त आयागपट्ट से तत्कालीन सामाजिक एवं धार्मिक दशा का बोध होता है । अष्टमांगलिक प्रतीकों का अंकन सुन्दर रूप से दृष्टव्य है ।
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तीर्थकरों के लांछन से उन्हें पहचानने में सुविधा होती है कुषाणकालीन प्रतिमाएं विशेष महत्वपूर्ण है क्योंकि इन पर लेख उत्कीर्ण है।
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मथुरा कलाशैली के अन्तर्गत निर्मित प्रतिमाएं, श्रावस्ती, प्रयाग, सारनाथ आदि स्थानों को चौथी शती ई. तक भेजी जाती थीं । मथुरा कला शैली के कलाकार काशी एवं सारनाथ आदि के शिल्पकारों को प्रेरणा प्रदान करते थे । 7
कोसी कला
कोसी कला छाता तहसील में सबसे बड़े कस्बे के रूप में स्थित है। यह 27°48′ उत्तरी अक्षांश तथा 77°26' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है । यह मथुरा दिल्ली मार्ग पर स्थित है । यह स्थान राष्ट्रीय राज मार्ग-2 से भी सम्बद्ध है।
कोसी कला मथुरा के उत्तर-पश्चिम में 45.1 किमी. दूर है तथा 11. 27 किमी. तहसील मुख्यालय से दूर है। यह उत्तर-पश्चिम में शेरगढ़ तथा दक्षिण-पश्चिम में नन्दगाँव से पक्की सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है।
कस्बे के दक्षिण में केन्द्रीय रेलवे के आगरा-दिल्ली खण्ड पर कोसी कला रेलवे स्टेशन स्थित है। यहाँ पर बस सेवा भी सदैव मथुरा, नन्दगाँव तथा दिल्ली के लिए उपलबद्ध रहती है ।
इस स्थान के नाम के विषय में अनेक किवदन्तियाँ प्रचलित हैं 1 इसका नाम कुशस्थली था जिसका दूसरा नाम द्वारका था, जहाँ पर भागवान कृष्ण ने कुछ दिन निवास किया था । फलतः इसका नाम कोसी