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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
धर्म की स्थिति का भी वर्णन किया है । उस समय तीर्थकर के अनुयायी एवं देवालय विद्यमान थे । ह्वेनसांग ने मथुरा की स्थिति एवं व्यक्ति के व्यवहार तथा आमों की किस्मों का भी वर्णन किया । 105
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ह्वेनसांग सन् 635 ई. में वैराट से होकर मथुरा पहुंचा। वह शरद ऋतु में मथुरा आया और पन्द्रह दिन ठहरा । "
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हर्ष के शासन काल में प्रजा सुखी थी । वह अपनी दानशीलता के लिए प्रसिद्ध था । मथुरा में उस समय पौराणिक हिन्दू धर्म का जोर हो चला था। सभी धर्मों के अनुयायियों को पूर्ण स्वतन्त्रता थी । हर्ष धार्मिक सहिष्णु था।
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हर्षवर्धन प्रबल योद्धा, सुयोग्य शासक, महादानी, विद्याप्रेमी और उच्चकोटि का साहित्यकार था । उसके रचे हुए ग्रन्थ रत्नावली प्रियदर्शिका और नागानन्द उपलब्ध है । वह विद्वानों, धर्माचार्यों और कवियों का आश्रयदाता था । उसके दरबार का सर्वाधिक प्रसिद्ध कवि बाणभट्ट था, जिसने संस्कृत में 'हर्ष - चरित' और 'कादम्बरी' नामक ग्रन्थों की रचना की थी । हर्ष प्रति पांचवें वर्ष प्रयाग में एक 'मोक्ष परिषद' का आयोजन करता था । 107
हर्ष की मृत्यु के बाद कन्नौज में केन्द्रीय शक्ति का अभाव परिलक्षित होता है। कन्नौज पर आधिपत्य करने के लिए पाल, प्रतिहार और राष्ट्रकूट राजवंशों के बीच होने वाला त्रिकोणात्मक संघर्ष सर्वविदित है। यह बहुत महत्वपूर्ण घटना थी ।
ग्यारहवीं शती ई. का इतिहास विभिन्न स्वतन्त्र राजाओं से सम्बन्धित है, जिनमें बहुत से राजाओं ने अपना राजनीतिक जीवन प्रतिहारों के अधीन प्रारम्भ किया था । प्रमुख राजवंशों में दिल्ली के चौहान, गुजरात के सोलंकी और मालवा के परमार थे ।
उपर्युक्त राजवंशों के साथ-साथ गहड़वालवंश, चन्देलवंश और कल्चुरि राजवंश भी महत्वपूर्ण हैं । इन राजवंशों में निरन्तर संघर्ष चलता रहता था | 108