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शूरसेन जनपद में जैन धर्म के प्रमुख केन्द्र
मथुरा में तीन रेलवे स्टेशन हैं-मथुरा जंक्शन, मथुरा छावनी तथा भूतेश्वर । रेल के अतिरिक्त सभी ओर से बस द्वारा भी मथुरा पहुँचा जा सकता है। अब मथुरा के प्रायः सभी निकटवर्ती शहरों से यहाँ तक सरकारी बसें भी आने-जाने लगी हैं।
लखनऊ से आगरा जाने वाली छोटी लाइन का कुछ भाग बड़ी लाइन में परिवर्तित हो गया है और शेष प्रस्तावित है। ___ मथुरा के नामकरण के विषय में पुराणों में उल्लिखित है कि शत्रुघ्न ने राजा लवण को मारकर मथुरा नामक पूरी को बसाया था। अन्य ग्रन्थों में मथुरा का अन्य नाम 'मेथोरा'', 'मदुरा', 'मत-औ-ला", ‘मो-तु-लो' तथा शौरीपुर का भी उल्लेख मिलता है।
रामायण में ‘मथुरा' एवं 'मधुपुरी' नाम ज्ञात होता है। अन्य नाम ‘मधुपहना'; ‘मधुषिका' एवं 'मधूपहन' भी उल्लिखित
प्लिनी' ने यमुना नदी को 'जोमनेस' कहा है जो ‘मेथोरा' तथा 'क्लीसोबोरा'12 के मध्य बहती थी।
मथुरा भगवान कृष्ण की जन्मभूमि के साथ ही साथ जैन धर्म की गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र रही है।
मथुरा से प्राप्त पुरातात्विक अवशेषों से ज्ञात होता है कि यहाँ पर जैन धर्म प्राचीनकाल से लेकर बारहवीं शती तक अपनी सुदृढ़ स्थिति में विद्यमान था। ___ जिनप्रभसूरि के अनुसार- मथुरा में कुबेरा देवी द्वारा निर्मित एक स्तूप स्वर्ण एवं मणिनिर्मित था जो सातवें तीर्थकर सुपार्श्वनाथ के सम्मान में बनाया गया था। कालान्तर में तेइसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ की मथुरा यात्रा के उपरान्त देवी की आज्ञा से इस पर ईटों का आवरण चढ़ाया गया और उसके पार्श्व में पार्श्वनाथ की एक प्रस्तर-प्रतिमा स्थापित की गई। महावीर स्वामी के निर्वाण के तेरह सौ वर्षों के बाद बप्पभट्टि सूरि की प्रेरणा से इस स्तूप का जीर्णोद्धार किया गया।