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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
के रूप में विख्यात रही है । 4 जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म के उद्भव के पश्चात् शूरसेन जनपद विभिन्न धर्मों के पवित्र स्थल के रूप में प्रसिद्ध हुआ। शूरसेन जनपद से प्राप्त कुषाण कालीन जैन कलाकृतियों से यह ज्ञात होता है कि कुषाण शासकों ने वैदिक धर्म के साथ-साथ जैन एवं बौद्ध धर्म को भी प्रोत्साहन प्रदान किया तथा उसके प्रचार-प्रसार में सहयोग किया। 36
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उपलब्ध पुरातात्विक अवशेषों के अध्ययन से यह सिद्ध होता है कि कुषाणों के शासनकाल में जैन धर्म अपने सर्वोच्च शिखर पर था और तीव्रगति से इसका प्रचार-प्रसार हो रहा था । 7 कुषाण कालीन अभिलेखों से तत्कालीन जैन धर्म की स्थिति पर प्रचुर प्रकाश पड़ता है । कुषाण शासकों ने जैन धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
कुषाण शासकों की धर्म सहिष्णु नीति मथुरा में जैन धर्म एवं कला के विकास में सहायक रही है । इसी काल में जैन मूर्तियों का निर्माण प्रचुर संख्या में हुआ।
कुषाण काल की अधिकांश जैन प्रतिमाओं पर लेख उत्कीर्ण है जो ब्राह्मी लिपि तथा प्राकृत भाषा में है। जैन संघ के गणों, गच्छों, कुलों, शाखाओं का उल्लेख अभिलेखों में है । 39
कुषाण काल में जैन तीर्थकरों की उपासना के लिए विभिन्न वर्ग के व्यक्तियों द्वारा आयागपट्ट निर्मित कराने का उल्लेख प्राप्त होता है । इन आयागपट्टों पर तीर्थकरों की पूजा के लिए अलग-अलग प्रतीकों का अंकन मिलता है | 10
शूरसेन जनपद में जैन धर्म के विकास में जनपद के शासक वर्ग, व्यापारी एवं सामान्य जनता का सहयोग रहा है। इससे ज्ञात होता है कि शूरसेन जनपद में जैन संघ अत्यधिक सुसंगठित था । शूरसेन जनपद के कंकाली टीले से प्राप्त अभिलेखों के अध्ययन से पता चलता है कि अधिकांश जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां जैन श्रावक एवं श्राविकाओं