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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
शूरसेन जनपद के अतिरिक्त इस समय जैन धर्म गुजरात में भी फैल चुका था। इसकी पुष्टि कालकाचार्य कथा से होती है। कथा के अनुसार कालक ने भड़ौंच जाकर वहां के निवासियों को जैन धर्म में दीक्षित किया। ___ शुंगकाल की जैन गुफाएं उदयगिरि-खण्डगिरि की पहाड़ियों पर प्राप्त होती है। उदयगिरि की हाथी गुम्फा में खारवेल का पहली शती ई. पू. का लेख उत्कीर्ण है।
शुंग कालीन नीलान्जना के नृत्य पट्ट से यह ज्ञात होता है कि शुंगकाल में जैन धर्म का कलात्मक विकास प्रारम्भ हुआ। यह नृत्य पट्ट शूरसेन जनपद से प्राप्त हुआ है। इस नृत्य पट्ट पर उत्कीर्ण जिन प्रतिमा के कथानक से यह सिद्ध होता है कि तीर्थंकर मूर्ति निर्माण की परम्परा शूरसेन जनपद में शुंगकाल से ही प्रारम्भ हो गई थी। ___ शूरसेन जनपद से प्राप्त आयागपट्ट का निर्माण भी शुंगकाल से ही प्रारम्भ होता है। एक क्षतिग्रस्त आयागपट्ट में सर्वप्राचीन भगवान पार्श्वनाथ का अंकन किया गया है।25। ___ शुंगकाल से पहले पार्श्वनाथ का अंकन नहीं मिलता है। अतः जैन धर्म के विकास में यह आयागपट्ट विशेष महत्वपूर्ण है। ___ शुंगकालीन आयागपट्टों पर अनेक प्रतीकों का अंकन भी प्राप्त होता है। प्रमुख प्रतीकों में चक्र, त्रिरत्न” पंचागुल पूर्ण कलश" आदि प्रतीक उत्कीर्ण हैं। __ शुंगकाल तक तीर्थंकरों की स्वतन्त्र प्रतिमाएं नहीं प्राप्त होती हैं अतः पूजार्थक आयागपट्टों का निर्माण शुंगकाल से प्रारम्भ होता है। इन महत्वपूर्ण कलाकृतियों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि शुंग शासक ब्राह्मण धर्मावलम्बी होते हुए उन्होंने अन्य अवैदिक धर्मों को भी प्रोत्साहन दिया।
शूरसेन जनपद में जैन कलाकृतियों के निर्माण का प्रारम्भ शुंग काल से आरम्भ होता है और आगे तक तीव्रगति से अग्रसर होता है। जैन धर्म