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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
आधा भाग रहा होगा। दक्षिण-पूर्व में मथुरा राज्य की सीमा जेजाक भुक्ति की पश्चिमी सीमा से तथा दक्षिण-पश्चिम में मालव राज्य की उत्तरी सीमा से मिलती रही होगी। सातवीं शती के बाद से मथुरा राज्य की सीमाएं घटती गई। इसका प्रधान कारण समीप के कन्नौज राज्य की उन्नति थी, जिसमें मथुरा तथा अन्य पड़ोसी राज्यों के बड़े भू-भाग सम्मिलित हो गए। ___ श्री कनिंघम का अनुमान है कि मथुरा के पश्चिम में भरतपुर और धौलपुर तक पूर्व में जिझौती तक तथा दक्षिण में ग्वालियर तक होंगी। इस प्रकार उस समय भी मथुरा एक बड़ा राज्य रहा होगा।
भारतीय धर्म, दर्शन, कला और साहित्य के विकास में इस प्रदेश का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यह नगरी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 270, 2830 अक्षांश तथा 770, 41 पूर्वी देशान्तर पर स्थित है। यमुना नदी के किनारे स्थित मथुरा नगरी भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की एकता की द्योतक रही है। ___ वर्तमान मथुरा के उत्तर में गुड़गांव और अलीगढ़ जिले का भाग है। पूर्व में अलीगढ़ और एटा, दक्षिण में आगरा तथा पश्चिम में भरतपुर
और गुड़गांव का कुछ भाग है। ___ उपर्युक्त वर्णन के आधार पर शूरसेन जनपद का विस्तार मथुरा, बटेश्वर, शौरिपुर तक था। जिसमें जैन धर्म का प्रमुख केन्द्र मथुरा, कंकाली, जैन चौरासी, शौरीपुर, बटेश्वर, अरिंग एवं सोंख आदि हैं। इन स्थानों से प्रचुर मात्रा में जैन कलाकृतियां मिली हैं। सर्वाधिक जैन कलाकृतियां कंकाली टीले से प्राप्त हुई हैं जो तत्कालीन धार्मिक एवं सामाजिक इतिहास का दिग्दर्शन कराती है।
भगवान कृष्ण की जन्मस्थली होने के कारण भी मथुरा का विशेष महत्व है। जैन परम्परानुसार सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ और तेईसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ का विहार भी मथुरा में हुआ था।” तथा अन्तिम तीर्थंकर महावीर स्वामी का भी पदार्पण हुआ था।' अन्तिम केवलि