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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
इस तथ्य का सूचक है कि प्रत्येक धर्म-सम्प्रदाय ने मूर्तिपूजा को किसी-न-किसी रूप में मान्यता प्रदान की। ___ पाषाणकाल की लम्बी यात्रा को मनुष्य ने जब पूरा किया तो उसने कुछ उपलब्धियां प्राप्त कर ली थी। पाषाणकाल के पश्चात् मनुष्य ताम्र पाषाणिक युग में प्रवेश करके वह धर्म के बहुत ही निकट पहुंच गया था। धर्म जो कि अत्यन्त ही प्राचीन विषय एवं आवश्यक रहा है कि मनुष्य ने स्वभावगत रूप से इसे स्वीकार किया और अन्य रहस्यों को उद्घाटित करने का प्रयास किया।
भारतवर्ष की प्राचीनतम सभ्यता सिंधु सभ्यता थी, किन्तु सिन्धु सभ्यता की लिपि अपठनीय होने के कारण इस प्राचीन सभ्यता के विषय में कुछ तथ्यगत रूप से कहना कठिन है क्योंकि हमारे पास इसके पठनीय साधनों का अभाव है। प्राचीन भारतवर्ष के आर्यावर्त में वैदिक धर्म की स्थापना हुई। यह धर्म अपनी स्थापना के बाद विकास की पराकाष्ठ को प्राप्त हआ वैदिक धर्म के रूप में अपनी एक पृथक पहचान स्थापित की। ___ कालान्तर में, विभिन्न रूढ़ियों, आडम्बर, खर्चीले लम्बे यज्ञ, पशुबलि आदि कुरीतियों का इस धर्म में समावेश हो गया। वैदिक धर्म में बहुदेववाद का जोर प्रबल हो गया। एकेश्वरवाद की प्रभुता को स्थापित करना कठिन था और यह निर्धारित करना और भी असम्भव हो गया कि बहुदेववाद अर्थात् सम्पूर्ण देव समूह में सर्वोच्च कौन है? ___ एक परमेश्वर को मानने का सिद्धान्त प्रायः लुप्त होता जा रहा था। देवताओं के समूह और यज्ञ आदि के खर्च को सभी मनुष्य वहन नहीं कर सकते थें फलतः लम्बी अवधि तक चलने वाले यज्ञ को भविष्य में यथावत् चला पाना कठिन हो गया तब किसी ऐसे धर्म-विज्ञान की आवश्यकता महसूस की जाने लगी जिसमें यह सब पाखण्ड, व्यय, पशुधन की बलि एवं अन्य कुरीतियों के लिए कोई स्थान न हो तथा पर्यावरण को भी सुरक्षित बचाया जा सके। वैदिक धर्म की कुरीतियों के