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विषय का महत्व एवं अध्ययन स्रोत
शूरसेन जनपद की धार्मिक संस्कृति ने विभिन्न कालों में देश के अधिकांश भागों को प्रभावित किया था।29 __ शूरसेन जनपद में विभिन्न धर्मों की अविरल धारा सदियों से प्रवाहित होती रही है। यह जनपद वैदिक, जैन एवं बौद्ध धर्मों का प्रमुख केन्द्र रहा है। ____ भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि होने के कारण यह क्षेत्र सदियों से वैष्णव धर्म का प्रमुख केन्द्र रहा है। शूरसेन जनपद की राजधानी मथुरा की गणना प्रमुख धार्मिक नगरी के रूप में होती है।
जैन आगमों का प्रारम्भिक संकलन एवं लेखन शूरसेन जनपद में हुआ। सुधर्मास्वामी एवं जम्बूस्वामी ने शूरसेन जनपद में जैन आगमों का संकलन किया। जैन आगमों के संकलन के कारण इस जनपद के महत्व में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है।
शूरसेन जनपद के शौरीपुर में जैन तीर्थकर नेमिनाथ का जन्म हुआ था। नेमिनाथ जैनधर्म के बाइसवें जिन भगवान माने जाते हैं। भगवान नेमिनाथ को श्रीकृष्ण के चचेरे भाई के रूप में भी जाना जाता है। नेमिनाथ की प्रतिमाओं में भी श्रीकृष्ण एवं बलराम का अंकन किया गया है। __ शूरसेन जनपद की राजधानी मथुरा वैष्णव सम्प्रदाय का केन्द्र थी लेकिन शक-कुषाणकाल में मथुरा भागवत धर्म का गढ़ नहीं रह गया था। मथुरा से प्राप्त लघु नाग-प्रतिमा अभिलेख से यह पूर्णतः सिद्ध होता है कि मथुरा में नागपूजा भी प्रचलित थी।
भगवान बुद्ध के एक शिष्य महाकच्चायन ने यहां पर जाति विषयक एक प्रवचन दिया था।
जैन मत के अनुसार दो ऋषियों द्वारा सिद्धि प्राप्त किये जाने के कारण शूरसेन को ‘सिद्धि क्षेत्र' कहा जाने लगा। शूरसेन और उसके समीपस्थ गांवों के निवासी अपने घरों एवं आंगन में जैन मूर्तियां स्थापित करने के लिए मंगलार्थ अथवा आले बनवाते थे।