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विषय का महत्व एवं अध्ययन स्रोत
कारण मानव मस्तिक को एक अहिंसावादी धर्म की आवश्यकता महसूस हुई। ___ छठी शताब्दी ई. पू. तक आते-आते आर्यावर्त के उत्तर-पूर्व की सीमान्त भूमि से वनों को काटकर कृषि योग्य बनाना प्रारम्भ हो गया। अब अतिरिक्त भूमि दोहन के लिए अधिक पशुधन की आवश्यकता थी। क्योंकि फल वाले हल को खींचने का कार्य पशुओं द्वारा ही हो सकता था। __पशुओं के बचाव के लिए यह आवश्यक हो गया कि पशुबलि को पूर्ण निषिद्ध कर दिया जाए जिससे पशुओं को कृषि कार्य के लिए प्रयोग में लाया जा सके। फलस्वरूप प्राचीन भारतीय ब्राह्मण धर्मानुयायी उपासकों का कर्मकाण्डीय धर्म से मोहभंग होने लगा। इस प्रकार के वातावरण में महावीर स्वामी ने समाज में व्याप्त परम्परागत असमानता पर आधारित अत्यन्त हिंसावादी एवं खर्चीले आडम्बरपूर्ण ब्राह्मण धर्म का विरोध करके समानता, मैत्रीभाव, अहिंसा तथा आडम्बर रहित धर्म का उपदेश दिया।
सामान्य जनता जो ब्राह्मण धर्म के आडम्बरों से थक चुकी थी, उसे यह अहिंसावादी धर्म अति रूचिकर लगा, उसने महावीर स्वामी के धर्म उपदेशों को सुनकर अपने हृदय में धारण किया और तद्नुसार आचरण करना प्रारम्भ किया जिससे यह धर्म एक पृथक् अहिंसावादी धर्म के रूप में स्थापित हुआ जो जैन धर्म के रूप में विकसित हुआ। __ जैन धर्म में अहिंसा पर विशेष बल दिया गया है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समानता का एहसास हुआ। आत्मिय उन्नति का द्वार जैन धर्म के द्वारा सरल हो गया, इस कारण प्रत्येक व्यक्ति इस धर्म के प्रति आकर्षित हुआ और स्वीकार करके गौरवान्वित अनुभव करने लगा। ___ जैन साहित्यिक साधनों के अनुसार महावीर स्वामी के पूर्व तेईस तीर्थंकर हो चुके थे, चौबीसवें तीर्थंकर स्वयं महावीर स्वामी थे। अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने के कारण 'जिन' कहलाए।26