Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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क्रम नं.
विषय
२७ संज्वलन लोभके बन्धस्वामित्व आदिका विचार
२८ हास्य, रति, भय और जुगुप्सा के बन्धस्वामित्व आदिका विचार
बन्धस्वामित्व
२९ मनुष्यायुके आदिका विचार
३० देवायुके बन्धस्वामित्व आदिका विचार
३१ देवगति आदि सत्ताईस प्रकृतियोंके बन्धस्वामित्व आदिका विचार
३२ आहारकशरीर और आहारकशरीरांगोपांगके बन्धस्वामित्व आदिका विचार
३३ तीर्थकर प्रकृतिके बन्धस्वामित्व आदिका विचार
३४ तीर्थकर प्रकृति के विशेष कारणों की आशंका
३५ तीर्थकर प्रकृतिके बन्धके सोलह कारणोंकी प्ररूपणा
३६ तीर्थकर
प्रकृतिके उदयका
माहात्म्य
४० मनुष्यायुके विचार
खंड की प्रस्तावना
पृष्ठ क्रम नं.
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५८
५९
६१
६४
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७८
९३
९८
१०९
विषय
प्रकृतिके स्वामित्वका विचार
१०२
४९ तीर्थकर
४२ प्रथम तीन पृथिवियोंमें बन्धस्वामित्वका विचार
बन्ध
४७ निर्यच, पंचेन्द्रिय तिर्यच, पंचेद्रिय तिर्यच पर्याप्त और पंचेद्विय तियच योनिमतियों में ज्ञानावरणीय आदिके बन्धस्वामित्वका विचार ४८ निद्रानिद्रा आदिक स्वामित्वका विचार
४९ मिथ्यात्व
४३ चतुर्थ, पंचम और छठी पृथिवी में बन्धस्वामित्व आदिका विचार ४४ सातवीं पृथिवी में ज्ञानावरणीय आदिके बन्धस्वामित्वका विचार ४५ सातवीं पृथिवीमें निद्रानिद्रा आदिके बन्धस्वामित्वका विचार १०९ ४६ सातवीं पृथिवीमें मिथ्यात्व आदिके बन्धस्वामित्वका विचार १११ तिर्यग्गतिमें
बन्ध
९१
आदिके बन्धस्वामित्वका विचार
आदेशकी अपेक्षा बन्धस्वामित्व ९३ - ३९८ ५० अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके बंधगतिमार्गणा स्वामित्वका विचार
१२५
३७ नरकगतिमें ज्ञानावरणीय आदि के बन्धस्वामित्वका विचार
५१ देवायुके बन्धस्वामित्वका विचार १२६ ५२ पंचेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्तों में ज्ञानावरणीय आदिके बन्धस्वामित्वका विचार
३८ निद्रानिद्रादिके बन्धस्वामित्वका विचार
मनुष्यगतिमें
३९ मिथ्यात्व आदि के बन्धस्वामित्वका विचार
बन्धस्वामित्वका
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पृष्ठ
५३ मनुष्य, मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियोंमें ओघके बन्धस्वामित्वकी प्ररूपणा
समान
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