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लाटी संहिता
उक्तं च
मूलग्गपोरबीओ साहा ग्रह खंधकंदबोअरहा । सम्मुच्छिमा य भणिया पत्तेयाणंतकाया य ॥४ साहारजमाहारं साहारणमाणपाणगहणं च । सहारणजीवाणं साहारणलक्खणं भणियं ॥५ जत्थेक्क मरइ जीवो तत्थ दु मरणं हवे अणंताणं । चंकमइ जत्य इवको चंकमणं तत्य णंताणं ॥ ६
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साधारण है, अनन्त कायात्मक है उसी प्रकार जितने उन सबका त्याग कर देना चाहिए, तथा जिन जिन सम्भावना हो उन सबका भी त्याग कर देना चाहिए। स्पति कौन कौन सी हैं इन सबका खुलासा इस प्रकार है ||७९||
कहा है - जिनका मूल या जड़ ही बीज हो ऐसे हल्दी अदरख आदिको मूलजीव कहते हैं। जिनका अग्र भाग ही बीज हो जो ऊपरकी डाली काटकर लगा देनेसे लग जायं ऐसे मेंहदी आदिको अग्रबीज कहते हैं । जिनका पर्व या गाँठ ही बीज हो ऐसे गन्ना आदिको पर्वबीज कहते हैं । कन्द ही जिनका बीज हो ऐसे सूरण, पिंडालु आदिको कन्दवीज कहते हैं। जिनका स्कन्ध ही बीज हो ऐसे ढांक आदिको स्कन्धबीज कहते हैं । जो बीजसे उत्पन्न हों ऐसे गेहूं, जौ आदिको बीजरुह कहते हैं तथा जो मूल अग्रबीज आदि निश्चित बोजोंके बिना अपने आप उत्पन्न हों उनको सम्मूर्च्छन कहते हैं । जैसे घास आदि । ये सब प्रत्येक वनस्पति कहलाते हैं। जिन वनस्पतियोंमें अनन्त निगोद जीवोंके शरीर हों उनको अनन्तकाय या सप्रतिष्ठित प्रत्येक कहते हैं तथा जिन वनस्पतियोंमें अनन्तकाय शरीर न हों उनको अप्रतिष्ठित प्रत्येक कहते हैं । इस प्रकार प्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर तथा अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर दोनों ही प्रकारके जीव सम्मूर्च्छन समझने चाहिए ||४|| ये निगोदके जीव साधारण नामा नामकर्मको प्रकृतिके उदयसे साधारण कहलाते हैं । साधारणका अर्थ सब जीवोंके एक साथ होना है। उस निगोद पिंडमें अनन्तानन्त जीव एक साथ उत्पन्न होते हैं, उन सबकी आहार पर्याप्ति साथ-साथ होती है और वह पहले समय में होती है । आहार वर्गणारूप पुद्गलकन्धोंको खल (हड्डी आदि कठिन भाग रूप), रस (रक्त आदि नरम भाग रूप ) भागरूप परिणमानेकी शक्तिको आहार पर्याप्ति कहते हैं । यह आहार पर्याप्ति भी सब जीवोंकी साथ साथ उत्पन्न होती है तथा उन्हीं आहार वगंणारूप पुद्गल स्कन्धोंको शरीरके आकार परिणमानेकी शक्तिको शरीर पर्याप्ति कहते हैं । यह शरीर पर्याप्ति भी सबकी साथ साथ होती है तथा उन्हीं पुद्गलस्कन्धोंको स्पर्शन इन्द्रियके आकार रूप परिणमानेकी शक्तिको इन्द्रिय पर्याप्त कहते हैं । यह इन्द्रिय पर्याप्ति भी उन जीवोंकी एक साथ होतो है तथा श्वासोच्छ्वासरूप आणप्राण पर्याप्ति भी उन सब जीवोंको साथ-साथ होतो है । पहले समयमें एक निगोद शरीर में अनन्तानन्त जीव उत्पन्न हुए थे। फिर दूसरे समयमें अनन्तानन्त जीव आकर और उत्पन्न हो जाते हैं फिर तीसरे समय में भी अनन्तानन्त जीव और आकर उत्पन्न हो जाते हैं। नये नये जो जीव आकर उत्पन्न होते जाते हैं. वे जिस प्रकार आहार आदि पर्याप्तियोंको धारण करते हैं उनके हो साथ पहले के समस्त जीव आहारादि पर्याप्तियोंको धारण करते हैं । इन सब जीवों का आहारादिक सब एक साथ होता है इसलिए इनको साधारण कहते हैं ||५||
एक निगोद शरीरमें जिस समय एक जीव अपनी आयुके नाश होनेपर मरता है उसी समय में जिनकी आयु समान हो ऐसे अनन्तानन्त जीव एक साथ मर जाते हैं। तथा जिस समयमें एक जीव उत्पन्न होता है उसी समय में समान स्थितिके धारक अनन्तानन्त जीव उत्पन्न होते हैं । इस
वनस्पति साधारण या अनन्त कायात्मक हैं। पदार्थों में त्रस जीव रहते हों या रहनेकी अनन्त कायात्मक अथवा साधारण वन
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