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श्रावकाचार-संग्रह
माक्षिकं मक्षिकानां हि मांसासृक्पीडनोद्भवम् । प्रसिद्धं सर्वलोके स्यादागमेष्वपि सूचितम् ॥७२ न्यायात्तद्भक्षणे नूनं पिशिताशनदूषणम् । त्रसास्ता मक्षिक। यस्मादामिषं तत्कलेवरम् ॥७३ किञ्च तत्र निकोतादिजीवाः संसर्गजाः क्षणात् ।
संमूच्छिमा न मुञ्चन्ति तत्सङ्गं जातु क्रव्यवत् ॥७४
यथा पक्वं च शुष्कं वा पलं शुद्धं न जातुचित् । प्रासुकं न भवेत् क्वापि नित्यं साधारणं यतः ॥७५ अयमर्थो यथान्नादि कारणात्प्रासुकं भवेत् । शुष्कं वाप्यग्निपक्वं वा प्रासुकं न तथामिषम् ॥७६ प्राग्वदत्राप्यतीचाराः सन्ति केचिज्जिनागमात् । यथा पुष्परसः पीतः पुष्पाणामासवो यथा ॥७७ उदुम्बरफलान्येव नादेयानि दृगात्मभिः । नित्यं साधारणान्येव त्रसाङ्गराश्रितानि च ॥७८ अत्रोदुम्बरशब्दस्तु नूनं स्यादुपलक्षणम् । तेन साधारणास्त्याज्या ये वनस्पतिकायिकाः ॥७९
धतूरा आदि मद्यके थोड़े-से ही अतिचारोंका वर्णन यहाँपर किया है । इनका विस्तृत वर्णन हम आगे व्रतोंका निरूपण करते समय करेंगे || ११|| शहदकी प्राप्ति मक्खियोंके मांस रक्त आदिके निचोड़ने से होती है । यह बात समस्त संसारमें प्रसिद्ध है तथा शास्त्रों में भी यही बात बतलाई है || ७२॥ इस प्रकार न्यायसे भी यह बात सिद्ध हो जाती है कि शहदके खाने में मांस भक्षणका दोष आता है क्योंकि मक्खियाँ त्रस जीव हैं और शहद उनका कलेवर है । जो त्रस जीवोंका कलेवर होता है वह सब मांस कहलाता है। शहद भी मक्खियोंका कलेवर है इसलिए वह भी मांस ही है अतएव शहदका खाना मांस खाने के समान है || १३ || इसके सिवाय एक बात यह भी है कि जिस प्रकार मांसमें सूक्ष्म निगोदराशि सदा उत्पन्न होती रहती है उसी प्रकार शहद में भी रक्त मांसके सम्बन्ध से सदा सूक्ष्म निगोदराशि उत्पन्न होती रहती है। शहद किसी भी अवस्था में क्यों न हो उसमें सदा जीव उत्पन्न होते रहते हैं । उन जीवोंसे रहित शहद कभी भी नहीं रहता ||७४ || मांस चाहे कच्चा हो, चाहे पका हुआ, चाहे पक रहा हो और चाहे सूखा हो वह कभी शुद्ध नहीं हो सकता । इसका भी कारण यह है कि वह सदा साधारण रहता है । उसमें हर अवस्थामें अनन्तकाय रूप निगोदराशि उत्पन्न होती रहती है । इसलिए मांस किसी भी अवस्था में क्यों न हो वह कभी प्रासुक नहीं हो सकता ||७५ || इसका भी अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार गेहूँ जो आदि अन्न अपने अपने कारण मिलनेसे प्रासुक हो जाते हैं अर्थात् भून लेनेसे, पका लेनेसे, कूट लेनेसे, पीस लेनेसे गेहूँ जो आदि अन्न प्रासुक हो जाते हैं उसी प्रकार मांस चाहे सूखा हो चाहे अग्निपर पकाया हुआ हो किसी भी अवस्था में क्यों न हो, वह कभी प्रासुक नहीं हो सकता ||७६ || जिस प्रकार पहले शराब और मांसके अतिचार कह चुके हैं उसी प्रकार इस शहद के अतिचार भी जैन शास्त्रोंमें वर्णन किये हैं । जैसे पुष्पों का रस पोना अथवा फूलों का बना हुआ आसव खाना आदि सब शहद त्याग व्रतके अतिचार हैं । गुलकन्दका खाना भी इसी दोष में समझ लेना चाहिए || ७७ || इसी प्रकार सम्यग्दृष्टि जीवोंको उदुम्बर फल भी नहीं खाना चाहिए, क्योंकि उदुम्बर फल साधारण हैं, अनन्तानन्त निगोदराशिके स्थान हैं तथा अनेक त्रस जीवोंसे भरे हुए हैं । भावार्थ-बड़ का फल, गूलर, पीपलका फल, अंजोर और पाकर इनको उदुम्बर फल कहते हैं । इनके पेड़ोंमेंसे सफेद दूध सा निकलता है इसलिए इनको क्षोरो फल भी कहते हैं। बड़, पोपर, गूलर में हजारों जीव प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं तथा अंजीर में भी सूक्ष्म जीव रहते हो हैं, अंजोर गूलर जैसा ही फल है उसमें सूक्ष्म जीवोंका होना स्वाभाविक है । इसलिए सम्यग्दृष्टिको इन सबका त्याग कर देना अत्यावश्यक है ||७८|| यहाँपर जो उदुम्बर शब्द कहा है । वह उपलक्षण रूप है । जिस प्रकार उदुम्बर
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