Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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(शान्तिसुधासिन्धु )
दोनों लोकोंम अत्यंत क्लेश उत्पन्न करनेवाला है ऐसा अत्यंत घोर दुष्कृत्य मैंने कितना किया है। इस प्रकार जो पुरुष प्रतिदिन विचार करता रहता है वही पुरुष बुद्धिमान् कहलाता है और वही पुरुष मनुष्योंके कर्तव्योंका जानकार गिना जाता है ।
___ भावार्थ- इस संसारमें रहता हुआ यह जीव प्रतिदिन पापकार्य वा पुण्यकार्य करता रहता है । आत्माके गुणोंको प्रगट करनेवाले जितने कार्य हैं वे सब पुण्यकार्य कहलाते हैं और आत्माके गुणोंको घात करनेवाले जितने कार्य हैं बे सब पाप कार्य कहलाते हैं। यह जीव जबतक अपने आत्मज्ञानसे रहित रहता है तबतक आत्माके यथार्थ स्वरूपको न जाननेके कारण प्रायः पाप-कार्यो में ही लगा रहता है। परन्तु मोहनीय कर्मका क्षय होनेसे अथवा अत्यन्त मंद हो नेसे जब इसको आत्माके स्वरूपका बोध होता है तब यह जीव आत्माको यथार्थ सुख पहुंचानके अभिप्रायसे पाप कार्योका त्याग करता है और पुण्य कार्योंकी वृद्धि करता है। ऐसा ही विचारशील सम्यग्दृष्टी पुरुष प्रतिदिन अपने पुण्यकार्य वा पापकार्योकी संख्या गिनता रहता है । वह सम्यग्दृष्टी पुरुष उन पुण्य-पापोंकी संख्या ही गिनकर नहीं रह जाता किंतु प्रातःकाल, मध्यान्हकाल और सायंकाल तीनों समय पापकार्योंकी आलोचना करता है, उनको नष्ट करनेके लिए प्रतिक्रमण करता है और आगे ऐसे पाप न करने के लिए आत्माको बोधित करता है । इस प्रकार वह पापकार्योका त्यागकर पुण्यकार्योंमें लग जाता है । तदनंतर धीरे धीरे बह आत्माको शुद्ध करनेका प्रयत्न करता है । इसके लिए वह पुण्यकार्योका भी त्याग कर देता है और फिर आत्म-ध्यानमें लीन होता हुआ समस्त कर्माको नष्ट कर सिद्ध अवस्था प्राप्त कर लेता है। इस संसारमें ऐसा जो पुरुष है वही बुद्धिमान् और कर्तव्योंका पालन करनेवाला कहा जाता है। .
प्रश्न- गुरो ! विषयतुल्योस्ति पदार्थोऽन्योपि मादकः ?
अर्थ- हे भगवन् क्या इस संसारमें विषयसेवनके समान अन्य भी कोई मादक पदार्थ है ?