Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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( शान्तिमुधासिन्छ ।
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सम्यक्चारित्रको विश्वासके योग्य और सुख शांतिका मूलकारण बतलाया है । जो मनुष्य जैसा कहता है, वैसाही करता है. उसकी जो इस संसारमें पूजा-प्रशंसा होती है, उसका कारण यही है. कि उसकी क्रिया ज्ञानपूर्वक होती है । ज्ञानपुर्वक क्रिया करनेसेही वह प्रशंसनीय मानी जाती है। जब साधारण ज्ञानपूर्वक क्रिया करनेवाला प्रशसनीय माना जाता हैं, तो फिर आत्माज्ञानी पूरुषकी क्रियाए अवश्यही मोक्ष प्राप्त करनेवाली होती हैं। इसलिए भव्य पुरुषोंको सबके पहले आत्मज्ञान प्राप्त करना चाहिए, और फिर उस आत्मज्ञानके साथ-माथ ध्यान, तपश्चरण आदि मोक्ष प्राप्त कर देनेवाली क्रियाएं करनी चाहिए, आत्मकल्याणका यह एक सबसे उत्तम साधन है ।।
प्रश्न- विद्यादिः शोभते केन कृपाब्धे बद में गुरो ?
अर्थ- हे भगवन् ! अब कृपाकर यह बतलाइए कि इस समारम विद्या, धन आदिकी शोभा किस किससे होती है ? उत्तर - क्षमया शोमते विद्या कुलं शोलेन शोभते ।
गुणेन शोभते रूपं धनं त्यागेन शोभते ॥ २९८ ॥ सौम्येन शोभते लक्ष्मीः सुखं पुण्येन शोभते । नीत्यैव शोभते राज्यं पाणि दानेन शोभते ॥ २९९ ।। सत्येन शोभते कण्ठः कृायो व्रतेन शोभते । ज्ञात्वेति पूर्वकृत्यं हि कार्य स्वर्मोक्षहेतवे ॥ ३०० ।।
अर्थ- इस संसारमें विद्या क्षमासे सुशोभित होती है. कुल शीलसे सुशोभित होता है, रूपकी शोभा गुणोंसे होती है, धनकी शोभा त्याग बा दानसे होती है, लक्ष्मीकी शोभा शांत परिणाओंसे होती हैं, मुखकी शोभा पुण्यकार्य करनेसे होती है, राज्यको शोभा नीतिपूर्वक राज्य पालन करनेसे होती है, हाथ की शोभा दान देनेसे होती है, कंठको शोभा सत्य भाषण करनेसे होती है, और शरीरको शोभा व्रत करनेसे होती है, यह समझकर स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त करनेके लिए क्षमाशील आदि आत्मगुणोंको धारणकर विद्या-कुल आदिकी शोभा बढ़ानी चाहिए।
भावार्थ-- विद्या प्राप्त करके, क्रोध मान आदि कषायोंकी वृद्धि करना बुद्धिमत्ताका कार्य नहीं है । क्योंकि क्रोधादि कषायोंके उत्पत्र